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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीगुणचंद अणुव्रत महावीरच० स्वरूप ८प्रस्ताव ॥२९२॥ 9469649846064905 गोयममुणिणा भणियं जइ एवं ता जिणिंद ! सबाई । सोदाहरणाई कहेह ताई भेएहिं जुत्ताई ॥ २३॥ न तुमाहितो अन्नो भयवं एयं निदसिउं सको। जं सवं सूरोच्चिय पयासिउं पभवए गयणं ॥ २४ ॥ इय वुत्ते सिरिवीरेण धम्मपासायमूलखंभेण । भणियं गोयम ! निसुणसु सबमिमं परिकहि जंतं ॥ २५॥ पंच उ अणुवयाई गुणवयाई च होंति तिन्नव । सिक्खावयाई चउरो विरईए गिहत्थलोयस्स ॥ २६ ॥ तत्थ य अणुवयाई पढमं पाणाइवायवेरमणं । वयमवरवयपहाणं पाणाइवाओ य सो दुविहो ॥ २७ ॥ विन्नेओ बुद्धिमया सुहुमो थूलो य तत्थ पुण सुहुमो । एगिदियजियविसओ थूलो बेइंदियाइगओ ॥२८॥ संकप्पारंभेहिं दुविहो थूलो य तत्थ संकप्पो । होइ हु उवेचकरणं आरंभो पयणकिसिपमुहे ॥ २९ ॥ संकप्पोऽवि य दुविहो अवराहकरंमि निरवराहे य । जो हरइ देव(ह)दवं स सावराहोऽनहा इयरो ॥ ३०॥ एवं नाऊण इमं थूले अवराहविरहिए जीवे । संकप्पओ न घाएज दुविहतिविहाइभेएण ॥३१॥ इय गहियजीववहविरइसुंदरो सावगोऽणुकंपपरो। अचंतं कोवेऽवि हु गोमणुयाईण न करेजा ॥ ३२ ॥ बंधवहं छविछेयं अइभारं भत्तपाणवोच्छेयं । एए पंचऽइयारा जम्हा दूसंति वहविरई ॥ ३३ ॥ एयाए दूसियाए विहलो सबोऽवि धम्मवावारो। कट्ठागुठ्ठाणंपिवि निरत्ययं रनरुनंव ॥ ३४॥ जं पाणिवहासत्तो सत्तो तं किंपि पावमायरइ । जेण निमेसपि सुहं न लहइ नरयाइसु गइसु ॥ ३५ ॥ ॥२९२॥ 44 For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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