________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नवरं दस अहिंगे वा जइ नो बोहेमि अणुदिणं भवे । तो परिचएमि विसए विसंव इइ गिण्हइ पइन्नं ॥४४॥ अह उज्झियमुणिवेसो चिंतितो देवयाए तं वयणं । जयगुरुणोऽवि निवसइ वेसाए गिहमि स महप्पा ॥ ४५ ॥ भुजेइ विसयसोक्खं धम्मकहाए य बोहिउं भवे । पवजागहणत्थं पेसइ पासे जिणिंदस्स ॥ ४६ ॥ अह अन्नया कयाई खीणे भोगप्फलंमि कम्मम्मि । वेरग्गावडियमई चिंतेउमिमं समाढत्तो ॥४७॥ तुच्छं सोक्खं तडितरलमाउयं भंगुरं च तारुनं । रोगविहुरं सरीरं दुलंभा धम्मसामग्गी ॥४८॥ खंडियसीलाण निरंतरं च निवडंति दुस्सहदुहाई । एवं ठिए न जुज्जइ संपइ मह निवसिउं एत्थ ॥४९॥ तो गंतुं जयगुरुणो पुणो समीवम्मि लेइ पवजं । आलोइयदुचरिओ विहरइ य समं जिणिदेण ॥५०॥ चिरपधज्जापजायपालणं भावसारमह काउं । सो नंदिसेणसाहू मरिउं देवत्तणं पत्तो ॥५१॥
इओ य सो सुदाढनागकुमारदेवो नावारूढस्स भगवओ पुवं उवसग्गं काऊण आउयखयचुओ समाणो समु-| प्पन्नो एगमि रोरकुले पुत्तत्तणेण, वुद्धिं गओ य संतो करिसगवित्तीए जीवइ, तंमि य पत्थावे सो जाव नियच्छेत्तं लंगलेण करिसिउमारद्धो ताव पत्तो तं गाम भुवणेकबंधवो जिणो, तो भगवया तस्स अणुकंपाए पडिबोहणत्थं पेसिओ गोयमसामी, गओ य तदंतियं, भणिओ य गोयमेण एसो-भद्द ! किमयं कीरइ?, करिसगेण भणियं-जं कारवेइ एस हयविही, को वा अन्नो अम्हारिसाण कलाकोसल्लवजियाण जीवणोवाओ?, गोयमसामिणा जंपियं
AAAAAAGARIKAAGAR
For Private and Personal Use Only