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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Artrottun गाढविम्हयक्खित्तनरनियरपलोइजमाणा यतिपयाहिणापुवयं पणमिऊण तइलोककलमलं जयबंधवं, निसन्ना जहो-18 इयट्ठाणेसु, पुच्छिया सुहविहारवत्ता, खणमेकं च ते जिणरूवदंसणसुहमणुहविऊण जहागयं पडिनियत्ता । अह जयनाहो गामाणुगामयं विहरिऊण भूवीढं । वाणारसीऍ पत्तो तत्थ य महिओ सुरिंदेण ॥१॥ पुणरवि रायगिहमि य फुरतमणिरयणमंडियसिरेण । ईसाणतियसवइणा थुयमहिओ पुच्छिओ य पियं ॥२॥ महिलानयरीएवि हु पत्थिवजणगेण परमभत्तीए । धरणिंदेण य नागाहियेण हिटेण पणिवहओ ॥३॥ गामागराइसु चिरं विहरिय पत्तमि वरिसयालंमि । एक्कारसमे सामी वेसालीऍ पुरीऍ गओ ॥४॥ तसपाणवीयरहिए थीपसुपंडगविजिए ठाणे । चाउम्मासियखमणं पडिवजित्ता ठिओ पडिमं ॥ ५॥ भूयाणंदो य तहिं भुयगवई भगवओ भवभएण । भत्तिभरनिब्भरंगो पूयामहिमं पयट्टेइ ॥६॥ अह तत्थेव पुरीए सावगधम्ममि बद्धपडिबंधो। दक्खिन्नदयापसमाइपवरगुणरयणरयणनिहीं ॥७॥ नामेण जुन्नसेट्ठी सुसावगो वसइ विस्सुयजसोहो । अन्नो मिच्छादिट्ठी अहिणवसेवित्ति नामेण ॥८॥ एगम्मि वासरंभी कजवसा नयरि बाहिनीहरिओ। सो जुन्नसेट्ठी सहो परमवियहो गुणहो य ॥९॥ पेच्छइ कंचणसच्छहसरीरकरपसरभरियनहविवरं । नीसेसलक्खणधरं उस्सग्गठियं महावीरं ॥१०॥ तं पेच्छिऊण निच्छउमजायसवण्णुनिच्छओ सहसा । हरिसुच्छलंतरोमंचकंचुओ वंदिउं सामि ॥ ११ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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