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४ दमुक्कमग्गणाभिहओ तक्खणविरह फुट्टहिययाए चक्कवाईए अणुगओ मओऽम्हि, मरिऊण संपयं तुह पुत्तत्तणेण उववन्नो,
इहि च चिरपणइणीए तीसे चक्कवाईए विरहं सोढुं न पारेमि, केसवेण भणियं-वच्छ ! अलं समइकंतदुक्खसुमरणेणं, एसो चिय सहावो एयस्स दढकयंतस्स जं न सहइ दटुं चिरकालं पियसंपओगसुहियं कमपि जणं, अवि य
देवाविय नियपणइणीविरहुन्भवदुक्खदहणसंतत्ता। मत्तब मुच्छिया इव कहकहवि गमति नियजीयं ॥१॥ तुम्हारिसाण पुत्तय ! केत्तियमेत्तं इमं अओ दुक्खं । जेसिं चम्मोणद्धं देहं सवावयासज्जं ॥२॥ ता विरम पुषभवसुमरणाउ वढेसु वट्टमाणेणं । तीयाणागयचिंतणवसेण सीयइ सरीरंपि ॥३॥ तेणं चिय संसारो नृणमसारो इमो दढं जाओ। जम्ममरणजररोगसोगपमुहाई दुक्खाइं ॥४॥
इय पन्नविउ विविहप्पयारहेऊहिं केसवेणं सो। नीओ कहमवि गेहे विरहमहावेयणाभिहओ ॥५॥ | तत्थ गओऽपि सो पमुक्तपाणभोयणो सुन्नमणो धरणिनिसियलोयणो महाजोगिच निरुद्धवावारंतरपरिचिंतणो है तणंपि व नियजीवियंपि गणेमाणो अच्छइ, एयावत्थं च तं पासिऊण जायचित्तपरितावेण सयणवग्गेण मा छलणा-18
विगारो कोऽवि होजत्ति संकियमणेण सहायरेण वाहराविया तंतमंतवाइणो, दंसिओ तेसिं, कया य उवयारा, न
जाओ मणागपि विसेसो, अन्नया य देसंतराओ आगओ एगो थेरपुरिसो, ठिओ एयस्स चेव गिहे, दिट्ठो अणेण मंखो, KI पुट्ठो य पासवत्ती केसवो, जहा-भद्द! किं कारणं जं एसो जुवावि रोगाइणा निरुवहओवि ससलो इव लक्खि जइ १,
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