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FAUGUSERICA
काओवि कुणंति नमंतसीसनिवडंतकुसुमदामाओ। जिणसंगमसोक्खुकंखिरीउ बाढं पयावणई ॥३॥ काओऽविहु गलियंसुयसंजमणमिसेण पायडिंति पुरो । जयगुरुणो पीवरकणयकलसपरिरेहिणं सिहिणं ॥४॥ मिच्छञ्चिय कारुणियत्तणं तुम उबहेसि हे सुहय ! । मयणसरजजरंगपि जन रक्खेसि जुवइजणं ॥५॥ मुंच कढिणतणं देहि नाह! पडिवयणमम्ह दुहियाणं । पेम्मपरायत्तमणं सप्पुरिसा नावहीरंति ॥६॥ तुह दंसणमेत्तेणवि दसमदसं पाविउच एस जणो । एत्तोऽवि मा उवेहसु एवं तजंति काओऽवि ॥७॥ इय सविलासं सुरकामिणीहि पायडियबहुवियाराहि । न मणागपि विचलियं चित्तं झाणाओ जगगुरुणो ॥८॥ अह उग्गयंमि सूरे अखुभियहिययं पलोइउं नाहं । संगमओ हयसत्ती चिंतिउमेवं समाढतो ॥९॥ अणुकूलुवसग्गेहिवि न चलइ एसो मुणी महासत्तो । ता किं एत्तो मोतुं एयं वच्चामि सुरलोए? ॥१०॥ अहया न जुज्जइ इमं काउं मे दीहरेण कालेण । उवसग्गियस्स जइ पुण इमस्स चित्तं पकंपेजा ॥११॥ इय कलुसासयगोयरगएण तइलोकबंधुणो धणियं । उवसग्गंगामेविहू विहरं परिचत्तभत्तस्स ॥ १२॥ वालुयपंथ सुभूमे सुछेत्त मलयंमि हथिसीसंमि । ओसलिमोसलितोसलिपमुहेसुं संनिवेसेसु ॥ १३ ॥ ते केवि तेण तियसाहमण विहरंतयस्स उवसग्गा। विहिया अइदुविसहा जे कहिउंपि हुन तीरंति ॥१४॥ एएणं चिय ते कारणेण चरिए न एत्थ वित्थरिया । सिद्धंताओ कुसलेहि किंतु सयमेव नायचा ॥१५॥
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