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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सौधमेन्द्रा श्रीगुणचंद महावीरच. ४प्रस्ताव | गमनं. ॥११८॥ इय आणत्तियमायन्निऊण परिमुक्कसेसवावारा । मुणियजिणनाहमजगमहूसवा हरिसिया तियसा ॥९॥ तो मजणपोक्खरिणीए जंति, बहुविहजलेण मजणु करेंति । कप्पूरमिस्सचंदणरसेण, आलिंपहि देहु सुबंधुरेण॥१॥ अइकोमलनिम्मलदूसजुअल, परिहंति वियंभियकंतिपडल । अह कंठपइट्टियलट्ठहार, दूरुज्झियकामुयजणवियार ॥२॥ अइसुरहिकुसुमनिम्मवियदाम, नवपारियायमंजरिसणाम । बंधति सुगंधसमिद्ध सीसि, तक्खणकयकुंचिरचारुकेसि ३ मणिमउडकिरणविच्छुरियगयण, नियरूवमडप्फरह सियमयण । वरकडयतुडियभूसियसरीर, तणुकंतिपसरपरिभूयसूर ॥ ४ ॥ किवि मगरमरालयसन्निसन्न, किवि हरिणवसहसिहिप्पचन्न । आरुहवि केवि कुंजरि महंति, केवि तुंगतुरए वेगे वयंति ॥५॥ चीणंसुयचिंधसहस्सरम्म, अवलोमणिमेत्तह दिनसम्म । आरुहवि चलिय किवि वरविमाणि, किंकि गिरवमुहरि महप्पमाणि ॥६॥ सहुलसरहहरिपट्टि चडिय, किवि पद्वियवेगेऽन्नोन्न घडिय । इय सुरसमूहह सवे बलेण, सुरवइ समीवमागय जवेण ॥ ७॥ एत्थंतरे खंभसहस्ससंनिविटें फलिहमणिपडियसालभंजियाभिरामदारदेसं अणेगलंबंतमुवाहलमालं पवरवहरवे ROSAROKARACCANCE ॥११८॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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