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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir RECESSACRORRECTOCK भणइ-अहो भह ! कहं भययं विहरइत्ति, बंभणेण भणियं-देव ! सुणेह, सो जएकनाहो कयाइ फुट्टहासजणियसंतासेसु भूयभवणेसु गोदुहियाए दुद्धरं नियमविसेसमालंबिऊण नासग्गसंगिचक्खुविक्खेवो मंदरोव थिमिओ झाणं झियाइ, कयाइ करालवेयालयालाउलासु पयंडपडियनरमुंडमंडलीसु सुसाणभूमीसु वीरासणं संठिओ निरुद्धउस्साससमीरपसरो सूरबिंवनिहियनयणो मज्झंदिणंमि आयावेइ, कयाइ गुरुभारकंतनरोव ईसिअवणयकाएण पलं|बियभुयदंडो गामबहिया काउस्सग्गेण चिट्ठइ, कयाइ निकारणकुवियपिसायविहियतिबोवसग्गं सोक्खपरंपरं पिव सम्ममहियासेइ, कयाइ छट्ठट्ठममद्धमासाइतव विसेससुसियसरीरो पंतकुलपरिभमणलढुंछतुच्छासाराहार गहेण पाणवित्तिं निवत्तेह। कइयावि हीणरूवेहि दुट्टसीलेहि कीडमेत्तेहिं । पागयनरेहिं विहियं विसहइ सो तिवमुवसगं ॥१॥ सा आवयावि मण्णे निसुणिजइ जा जएकदेवस्स । दइयव दुन्निवारा नेव समीवं समलियइ ॥२॥ एवं किर तस्स महायसस्स उत्थरइ दुत्थिमा भीमा। कइयावि तियसनिवहा पूयामहिमं पकुवंति ॥३॥ इय नरवर! तचरियं न मारिसो किंपि साहिउं तरइ । तारिसजणचरियाई मुणंति जइ तारिसा चेव ॥ ४॥ एवं निसामिऊण राया सपरिसाजणो दीहरमुक्कनिस्सासो अच्छिन्ननिवडतबाहापवाहाउलवयणकमलो सोगं काउमारद्धो भणोऽवि गओ सगिहं। समप्पियं तुन्नागस्स मोलऽद्धं, सेसदवेण विविहं विलसंतो कालं वो लेइत्ति । For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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