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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्ताव ॥२१९॥ HOCABCAMGADCASSADORECADA [दिट्ठो य सो रुक्खच्छायाए पडिपुन्नसबंगोवंगो सस्सिरीओ अक्खयसरीरो बालओ, गहिओ य तेणं, पणामिओ| जातिलस्तम्ब |नियभजाए, भणिया य एसा-पिए! एस तुह अपुत्ताए पुत्तो होही, सम्मं रक्खिजाहि, गोसे य पगासियं जहा मम वैश्यायनामहिला गूढगम्भा आसि, सा य संपर्य पसूया, दारगो से जाओ, एयस्स चेव अत्थस्स निच्छयनिमित्तं छगलकं वा धिकार वाइत्ता लोहियगंधो कओ, सा य सूइयनेवत्येण ठाविया, बद्धावणयं च विहियं, सम्माणिओ सयणवग्गो, पसारिया, लोयम्मि वत्ता, निवत्तियाई छट्ठीजागरणचंदसूरदंसणियमुहाई किच्चाई, समुचियसमए ठवियं वेसियायणोत्ति नाम, कालकमेण य पत्तो जुवणं, सावि से जणणी चंपाए नयरीए नेऊण चोरोह विकयनिमित्तं ओडिया रायमग्गे, सुरूवत्तिकाऊण गहिया थेरीए वेसाए, सिक्खाविया गणियाण वेजं । अविय सुरविलयन्भहियविसिट्ठरूवसोहग्गपवरलायन्ना । सुरयप्पवंचकुसला वियक्खणा गेयनदृसु ॥१॥ उवयारभणियपरिचत्तबोहसमयाणुरूवचेट्ठासु । पत्तट्ठा सा जाया लद्धपसिद्धी य नयरीए ॥२॥ दसणमेत्तेणं चिय जणस्स पुर्व जणेइ विक्खेवं । किं पुण उभडसिंगारसारनेवत्थरुइरा सा ? ॥३॥ इओ य सो वेसियायणो अत्थोवजणनिमित्तं करेइ विविहवाणिज्जाई, अन्नया य घयस्स सगळि भरिऊण वयं- ॥२१९॥ सएहिं समेओ गओ चंपानयरिं, तम्मि य समए समारद्धो पुरे महूसवो, पवराभरणरुइरदेहा नियंसियपहाणपट्टणुग्गयचीरंसुयाइवत्था जहिच्छं तियचउकचच्चरेसु रामाजणेण परिगया विलसंति नायरा, ते य दद्दण चिंतियमणेण -SCREEGAAAAA For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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