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गुणचंद महावीरच० ८प्रस्ताव:
तुर्याणुव्रते
सुरेन्द्र दत्तकथा.
३११॥
आपीडियपरियरु सो कुमारु, जुज्झणहं लग्गु सो दढप्पहारु ॥ १२॥ सरकप्पियपक्खरतुरयघटु, मुसुमूरियवेरियरुडमरटु । जमु संमुहु किर जो खिवइ चक्खु, सो तक्खणि जायइ जमह भक्खु ॥ १३ ॥ एगोऽविहु भयवसकंपिराण, सोणेगरूव हूओ वेरियाण । लक्खिजइ बाणमुयं तु केम्व, जलधार मुयंतउ मेहु जेंव ॥ १४ ॥ उबद्धजूडभडभिउडिभीस, तिखंडिय सत्तहुं सरहिं सीस । तमुदारुणरणकम्मेण तुह, ओइन्ननहंगणि तियसवंठ ॥१५॥ अवरोप्परुपेल्लिरि सुहडसत्थि, नासणह पयट्टइ अइव हत्थ । विवरंमुहि सावत्थीए नाहि, पवहंतइ नररुहिरप्पवाहि ॥ १६ ॥ समरंगणि जोअइ जा कुमार, संचिट्ठइ रिउ अकयप्पहार । ता पुत्व भणियविजाहरेहि, अवहरिवि हरिसभरनिम्भरेहि ॥ १७ ॥ उवणीओ खयरनरनायगस्स, हरिसूससंतमुहपंकयस्स । अह आगयंमि सुदिणंमि तेण, परिणाविओ कुमरु वसंतसेण ॥१८॥
॥ ३११॥
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