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श्रीमहा०
चरित्रे २ प्रस्तावः
॥१०॥
AGORUSSISKOSKI
हापुरओ जगवं चिय समागया वद्धवेगा पुरिसा । तओ भरहो इहलोयतुच्छ मुहमेत्तसंपायणपञ्चलत्तं निच्छिऊण चकरय- समवसरण
णस्स उभयलोगमुहजणगत्तं पुण परमेसरस्स पवरकरेणुगाखंधाधिरोहियसुयविरह विहुरमरुदेवासमेओ नीसेसकुमारनि- मरुदेवीयरपरियरिओ समग्गवलवाहणो हरिसभरनिन्भरंगो भगवओ केवलमहिमं काउं संपत्थिओ। अंतरेण मरुदेवीए मोक्षः भगवओ छत्ताइछत्तपमुहं विभूइसमुदयं पेच्छंतीए तहाविहभवियब्धयावसेण सुहज्झाणपरायणाए अंतगडकेवलितं
देशना. जायं। भरहखेत्ते पढमसिद्धोति परिचिंतिऊण देवदाणवेहि कया तीसे महिमा, खित्तं खीरोयसायरे से सरीरं, भरहो य परमपमोयमुव्वहंतो तित्थयरं तिपयाहिणीकाऊण वहुप्पयारं थोऊण सदेवमणुयासुराए सभाए आसीणो। सामि-15 णावि सजलजलहरारावगंभीराए आजोयणप्पमाणखेत्तपडिप्फलणपञ्चलाए पइजणमेककालं संसयसयवुच्छेयजणणीए वाणीए पारद्धा धम्मदेसणा ॥ लहं? __ भो भो महाणुभावा ! दुलह लहिऊण माणुसं जम्मं । उप्पत्तिपलयकलियं वियाणि भवसरूवं च ॥४१॥
कीसायासनिबंधणसयणसरीरेसु मोहवामूढा । धम्मोवजणरहिया निरत्थयं गमह नियजीयं?॥४२॥ सुमरह किं न निरंतरमणंतसो तिक्खदुक्खसंतत्ता। विवसाएसु ववसिया जंभे चउसुपि विगईसुं॥४३॥
॥१०॥ तथाहि-नरए परमाहम्मियपहरणछिजंतअंगपञ्चंगा। तिरियत्ते वहवंधणदहणंकणवाहणाभिहया ॥४४॥
देवत्तेऽवि य ईसाविसायपेसत्ततावसंतत्ता । मणुयत्ते पुण दोगच्चवाहिविहुरा चिरं वुत्था ॥४५॥
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