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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पइसमयं विहडियजडकडप्पवक्कलगलंतजलकणिया । अंतो विसंति तणुणो जयगुरुणो दुस्सहा धणियं ॥२॥ पयईए चिय माहुन्भवस्स सीयस्स दुस्सहं रुवं । किं पुण परोटदुचेट्ठवंतरीसत्तिपग्गहियं ॥३॥ पागयनरस्स तारिससीउब्भववेयणाविणियस्स । फुट्ट देहं निरुवकमाउयत्ता ण उण पहुणो॥४॥ इय चउजामं रयणि जिणस्स सीओवसग्गसहिरस्स । सविसेसं संलग्गं धम्मज्झाणं भवुम्महणं ॥५॥ तओ तदहियासणेण जायंमि विसेसकम्मक्खए वियंभियं ओहिनाणं, सवं च लोगं पासिउमारद्धो, पुवं पुण 8 गम्भसंभवाओ आरब्भ सुरभवकालमित्तो ओही आसि, एक्कारसय अंगाणि सुयसंपयं होत्था, अह कडपूयणा निप्प कंप भयवंतं वियाणिऊण रयणिविराममि पराजिया समाणा उवसंता कयपच्छावाया य भत्तीए पूर्य काऊण गया सहाणं। सामीवि तत्तो निक्खमित्ता भहियं नाम नयरिं छटुं वासावासं काउमुवागओ, गोसालगोऽवि मिलिओ छ?मासाओ, सामि दद्ण जायहरिसो नमिऊण पायपंकयं पमोयमुवगओ समाणो पुवपवाहेण पजुवासिउं पवतो, सामीवि तत्थ विचित्ताभिग्गहसणाहं चाउम्मासखमणं काऊण वासारत्तपज्जंते बाहिं पारेत्ता गोसालेण समेओ मगहाविसए अट्ठ मासे उउबद्धे निरुवसग्गं विहर।। I सत्तमं च वासारत्वं काउकामो आलहियं नाम नयरिं एइ । तत्थवि चाउम्मासखमणाणंतरं बाहिं पारेत्ता कंडागनामसन्निवेसमुवागच्छइ, तहिं च उत्तुंगसिहरस्स महुमहणभवणस्स समुचिए एगदेसे ठिओ काउस्सग्गेण सामी,181 SAGARAAGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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