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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्ताव गोशाल कस्य प्रव्रज्या . ॥१८६॥ ROCOCCARE जामि एयस्स सीसत्तणं, न कयाइ निष्फला हवइ रयणायरसेवा, एवं विगप्पमाणस्स भयवं पारिऊण पत्तो तमेव । तंतुवायसालं, ठिओ काउस्सग्गेणं, गोसालोऽवि सामिणो अटुंगं निवडिऊण चलणेसु विनवेइ एरिसमाहप्पं तुह देवजय ! नो मए पुरा नायं । कुसलोऽवि मुणइ नग्धं अहवा थवियाण रयणाणं ॥१॥ नियजणगच्चाओऽविहु वंछियसुहअत्थसाहगो जाओ। अणुकूले वा दइवे अनओऽवि नयत्तणमुवेइ ॥२॥ हवउ बहुजंपिएणं पडिवजिस्सामि तुम्ह सीसत्तं । अब्भुवगमेसु सामिय! पत्तो एको तुम सरणं ॥३॥ ___सामीवि इमं सुणित्तावि विहिपडिसेहे अकुणमाणो तुसिणिको ठिओ, इयरोऽवि निययाभिप्पाएण पडिबन्नसिस्सभावो भिक्खाए पाणवित्तिं काऊण भगवओ समीवं न मुयइ, अह बीयमासखमणपारणए आणंदनामस्स गिहवइस्स घरे गोयरचरियाए पविट्ठो भयवं, पडिलाभिओ य खजगविहीए, तइए य मासखमणपारणए सुनंदस्स मंदिरे सबकामगुणिएणंति । एत्तो चउत्थमासखमणमुवसंपचित्ताणं विहरइ, गोसालोऽवि बहुदिवससेवासंभावियपणयभावो कत्तियपुन्निमादिवसे संपत्ते पुच्छइ-भयवं! एरिसियंमि वारिसियमहूसवे किमहमज भत्तं लभिस्सामि ?, एत्थंतरे जिणवरतणुसंलीणेण भणियं सिद्धत्थवंतरेण-भद्द! अज तुम पाविहिसि अंबिलेण सम कोदवकूरं, कूडरूवगं च दक्खिणाएत्ति, सो एवं निसामिऊण सूरुग्गमाए आरम्भ सवायरेण उच्चावएसु गिहेसु परिभमिउमारद्धो, जत्थ जत्थ वच्चइ तत्थ तत्थ आरनालकल्लवियं कोदवकूरमेव लम्भइ, अह जायंमि अवरोहसमए छुहा-2 E%AC- AAAAAKA ए पाणवित्ति कामहे अकुणमाणो नामनगमेसु सामिय! मावि नयत्तणमुकेश ॥१८६॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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