SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 308
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पालम्भ, श्रीगुणचंद अम्ह गिहे तुम्हेहिं कोऽविहु मुक्को उ जो इमो समणो । सो अचंतं नियकजकरणपडिबद्धवावारो ॥१॥ तापसोमहावीरचा एयंपि नो वियाणइ गोस्वेहिं जहागिह एयं । पइदिणमुबद्दविजइ रक्खइ न खणंतरं एगं ॥२॥ ५प्रस्तावः किं आलस्सं अहवाऽणुकंपणं अहव होज व उवेहा । निक्खिण्णत्तं वा न याणिमो तस्सऽभिप्पायं ॥३॥ ॥१४७॥ अहवा मुणित्ति गोरूववारणं नो करेति स महप्पा । गुरुदेवपूयणपरा अम्हे समणा न किं होमो? ॥४॥ हे कुलवइ ! जइ रुटोसि अम्ह तं उडवयं हणिजंतं । एएणावि पओगेण वंछसे ता लहुं कहसु॥५॥ जेण विमुंचामो तस्स संकहं को मए सह विरोहो? । रुट्ठोवि तोसणिजो जो किर को तेण सह माणो? ॥६॥ तुह चित्तवित्तिमवियागिऊण णूणं मुहा को रोसो। तस्सोवरि अम्हहिं का वा मूढाण होइ मई ? ॥७॥ 8 इय इंसाभरसम्मिस्सकोवदरफुरियअहरमुल्लविङ । दूइजंतगमुणिणो कुलवइपासाउ निक्खंता ॥८॥ ६ ते य तहा गच्छमाणे दद्ण कुलवई सबायरेण वाहराविऊण भणिउमाढत्तो, जहा-भो महाणुभावा! किमेव परिकप्पह ?, को मज्झ दोसो ?, मए वयंससिद्धत्थरायपुत्तोत्ति कलिऊण एयस्स मुणिणो गउरवं कयं, किं मए एयं वियाणियं? जं एसो एवं नियगेहमुवेहिस्सइ, एवं ठिएवि तहा करिस्सं जहा न विणस्सइ तुम्ह आसमो, एत्तो आसानो॥१४७॥ ||मा वहिस्सह संतावं, मा चिंतिजह कुविगप्पजालं, तुम्हाणं अवरो को मम पिओत्ति ?, एवमायन्निऊण जायसं-18 दतोसा गया ते जहागयंति, कुलवईवि गओ जिणसगासे, दिट्ठो उडवओ निलुत्तपुंखपुडविडओब नाममेत्तावसेसो, BOSS GROUGHSAN For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy