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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्ताव: गोशालय पृथग्भवनं चौरोपसगैश्च ॥१९७॥ दलीलाए आगच्छमाणो, दहण य साहियं चोरवइणो, जहा-एगो नग्गसमणो एइ, तेण भणियं-न हरियवमत्पित्ति एस न भाइ, अन्नहा कहं एत्थ अमाणुसाए अडवीए पविसेजा?, अहवा एस कोइ दुरायारो अम्हाणं एवंविह- रूवपडिवण्णो मण्णे परिभवं उप्पाएइ, ता एउ अक्खलियगईए जेण अवणेमो से दुविणयं, एवं च जंपताणं समीवमागओ गोसालो, तो तेहिं दूराओ चिय साहिलासं-एहि माउलग! सागयं तुहत्ति भणिऊण गहिओ करेण, उहाविओ पढ़ि, मरणभयविहुरेण य उडिया अणेणं, तओ चोराहिवइणा पंचसयचोरसमेएण आरुहिऊण जहक्कम वाहिओ सुचिरवेलं, छुहातण्हापरिस्समभिहओ जया कट्टगयजीओ जाओ ताहे मोत्तूण जहाभिमयं गया तकरा, गोसालोऽवि बाढं सुट्टियसरीरो मोग्गरपहारजजरिउच्च कुलिसताडिउच्च विगयचेयण्णो तरुसंडछायाए मुहुत्तमेत्तं विगमिऊण सिसिरमारुएण उवलद्धचेयणो सोगं करेउमारद्धो, कहं ? हा दुइ दुहु विहियं हियत्थिणा नबुद्धिणा उमए । सो सामी मुको अचिंतमाहप्पपडिहत्थो ॥१॥ निदोसंमिवि नाहे कुवियप्पेहिं मए हयासेण । जाकिर कया अवण्णा सा संपइ निवडिया सीसे ॥२॥ तस्स पभावेण पुरा अणेगठाणेसु दुट्ठसीलोऽवि । निबूढोऽहं संपइ तविरहे नत्थि मे जीयं ॥३॥ अहवा-सहसचिय सम्ममचिंतिऊण कीरति जाई कजाई । अप्पत्थभोयणं पिव ताई विरामे दुहावेंति ॥४॥ मण्णे इमिणचिय कइयवेण मं छलिउमिच्छइ कयंतो। कहमनहा कुबुद्धी हवेज एयारिसी मज्झ ? ॥५॥ ॥१९७॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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