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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रागुणचद ||कोऽवि निच्छओ, पच्छावि सुलभो चेव मरणाभिलासो, तओ रयणावलीए सुणिऊण तीसे निसेहपरं वयणं फयरत्नावलीमहावीरच० मोणं, खणंतरेण य दिद्धिं से वंचिऊण परियणेण अमुणिजमाणा निग्गया आवासाओ, पविट्ठा दूरदेसपरिसंठियंमि पाशवन्धः ६ प्रस्तावः वणनिगुंजे, जोडियपाणिसंपुडा य भणिउं पवत्ता॥२११॥ भो काणणदेवीओ! वयणं मे सुणह मंदपुन्नाए । को अन्नो इह ठाणे ? साहिजइ जस्स नियकजं ॥१॥ एसाऽहं दुहहे विरूवलक्षणचएण निम्मविया । परिणयणुत्तरकालंपि जीए जाओ इमो विरहो ॥ २॥ एत्तो तुज्झ समक्खं अत्ताणं तरुवरंमि लंबित्ता । मोएमि अजसकालुस्सकलुसिएणं किमेएण! ॥३॥ सिरिपुररायतणुभव! तुमंपि दूरट्ठिोऽवि लक्खिजा। जह तीऍ वराईए मम विरहे उज्झिओ अप्पा ॥४॥ इय भणिऊण संजमिओ केसपासो निविडमापीडिया नियंसणगंठी उत्तरिलवत्थेण रइओ तरुसाहाए पासओ आबद्धो नियकंधराए, मुक्को अप्पा, एत्यंतरे सेजाए तमपेच्छमाणी अणुमग्गेण धाविया अंबधाई, पत्ता कम्मधम्महै। संजोएण तं पएसं, चंदजोण्हाए य लंबमाणादिद्वारयणावली, तओ हाहारवं कुणमाणी तक्कालिययं पडियारं काउमस मत्था लग्गा वाहरिउं-भो भो सुरविंतरखयरा! परित्तायह परित्तायह, इममि इत्थीरयणमि देह पाणभिक्खं, छिन्नह |पासगं, मा अंगीकरेह उवेहाजणियं पावपंकति । इओ य कणगचूडो सुरसेणकुमारो य पत्ता तं पएस, सुणिया ॥ ॥२११॥ एसा उग्घोसणा, तओ गयणाओ ओयरिऊण छिन्नो से पासओ संवाहियं अंग, पुच्छिया य अणेहिं-सुयणु! को MUSICIANSAANIG A. COM For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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