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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री गुणचंद महावीर च० ६ प्रस्तावः ॥। १९८ ।। www.kobatirth.org निरुवमकलाणकलाव कारणं लोयलोयणाणंदं । तं पेच्छिऊण सामिय! कहमिव पावा पउस्संति ? ॥ १ ॥ तिकरणसुद्धीहि जणरखं जो समीहए काउं । तस्स तुहोवरि दुट्ठा कह वा बुद्धी पयट्टेज्जा ? ॥ २ ॥ किं अमयंपिव विसनिविसेसबुद्धीऍ कोऽवि बोहेज्जा । अहवा विमूढहिययाण होइ एसेव नूण मई ॥ ३ ॥ धुवमम्हाणं देवत्तदिवमाहप्पसंपया विहला । जा तुम्हावइविणिवारणेण नो होइ सकयत्था ॥ ४ ॥ निच्छउ सा पहुभत्तीवि कह व लक्खिजए सयण्णेहिं । जाव न निचं पासट्ठिएहिं सेविज्जसे तंसि ॥ ५ ॥ इय सुरनाहो सुचिरं उवसग्गकरं जणं समत्तिं च । दूसित्ता सुदुहत्तो नमिउं असणं पत्तो ॥ ६ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Maratha faeमाणो गामांगरसन्निवेसमागओ, तम्मि य विभेलगो नाम जक्खो, सो य पुवभवफासियसम्मत्तवसेण समुप्पण्णपरमपमोओ भयवओ पडिभापवण्णस्स अहिणवपारियायमंजरी परिमलुम्मिलंत फुलंघयधुसराहिं हरियंदणरसुम्मिस्स घुसिणघणसारविलेवणेण य पूयं परमायरेणं निवत्तेर, अह पुण को एस बिभेलगजक्खो पुवभवे आसि १, भण्णइ महाविस सिरिपुरे नयरे महासेणो नाम नरवई, तस्स सिरी नाम भजा, तीसे य असेसविन्नाणकलाकलावकुसलो सुरसेणो नाम पुत्तो, सो य संपत्तजोवणोऽवि न खिवइ चक्खुं पवररूवासुवि रमणीसु, बहुं भणिज्जमाणोऽवि न पडिवज्जइ पाणिग्गहणं, किं तु मुणिवरोध संहरियवियारो चित्तपत्तच्छेयाइविणोदेहिं कालं वोलेइ, रायावि For Private and Personal Use Only वैशाल्यां कर्म कारोपसर्गः विभे लक पूर्व भवः ॥ १९८ ॥
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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