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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir a AE% %A ACANCSURESSIOSACSC परिणी, सेसं पुणो कहिस्सामि विहेसु ताव भोयणं, तओ आउलहिययएणावि तदणुवित्तीए कयमणेणाहारग्गहणं, तयणंतरं आयंतस्स सुहासणगयस्स निवेइयमणाए-गोभइ ! तुह गयस्स कइवयदिवसावसाणे विओगदुक्खेण वा 5 तहाविहवाहिवसेण वा परिकिसियसरीराए सिवभहाए अयंडेच्चिय समुप्पन्ना गाढं सूलवेयणा, आउलियं सरीरं, ओसहेहिवि न जाओ विसेसो, गया य मुहुत्तमेत्तेण पंचत्तंति, एयं च सो आयन्निऊण विओगवजजजरियहियो| खणंतरमुच्छिओ इव विगमिऊण मुक्कपोकारकरुणसई रोइउं पवत्तो, समासासिओ पासवत्तिणा जणेण, कयाइं मयलोइयकिचाई, कालेण य जाओ अप्पसोगो । अन्नया य भणिओ लोगेहिं, जहा-गोभद्द! कीरउ कलत्तसंगहो, विमु-18 चउ सोगो, एसचिय गई संसारविलसियाणं, तेण भणियं-भो दूरमसरिसमेयं, तहाहि पढमं दबोवजणकएण देसंतरं गोऽहमहो। चिरकालकिलेसवसा तलामे नियगिहं पत्तो॥१॥ किर भुंजिस्सामि अहं इण्हि नियपणइणीए परियरिओ। पंचविहविसयसोक्खं निरवेक्खो सेसकज्जेसु ॥२॥ भवियच्चयावसेणं अक्काले चिय दिवं गया सावि । एवं ठियंमि अन्ना परिणिजद केण कजेण? ॥३॥ जह सा मरणं पत्ता अहुणुढावि तह जइ मरेजा । ता होज निप्फलचिय पुणोऽवि सोऽवि आरंभा ॥४॥ नियजीवियस्सवि कहं विस्सासो बुज्झए सयन्नेण? । आगयगयाइं जं किर कुणइ व मुहमारुयमिसेण ॥ ५॥ संघडणविहडणापडुपरक्कमे निकिवे कयंतंमि । सच्छंदं वियरते कत्थ व जाएज थिरबुद्धी? ॥६॥ %AC% For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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