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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org मि अकरते तित्थुच्छेओ जिणे अभत्ती य । साहूणमणागमणं भवाणमबोहिलाभो य ॥ ६ ॥ काराविए इमंमी भवजलनिहितरणजाणवत्तंमि । अचंतसंतकंता कारेअवा जिणप्पडिमा ॥ ७ ॥ तीसे तिसंझमपमत्तमाणसेहिं परेण जत्तेणं । पूया य विरइयवा सा पुण अट्ठपयारेवं ॥ ८ ॥ वासकुसुमक्खणं धूवपईवेहिं वारिपत्तेहिं । फलभोयणभेएहि य जणनयणानंदजणगेहिं ॥ ९ ॥ अविहा पूया कीती भत्तीऍ जिनिंदाणं । तं नत्थि नूण कल्लाणमेत्थ जं नो पणामेइ ॥ १० ॥ तथाहि - हरियंदणघणसारुज्भवेहिं गंधेहिं सुरहिगंधेहिं । सवण्णुसिरे निहिएहिं होंति भवा सुरहिदेहा ॥ ११ ॥ नवमालइकमलकथंबमल्लियापमुहकुसुमदामाहिं । विरयंता जिणपूंय घरंति भवा सिवसुहं च ॥ १२ ॥ नहरु जलपsिहत्थे णिपयछेत्ते जमक्खया खित्ता । पसवंति दिवसुहसस्ससंपयं तं किमच्छरियं १ ॥ १३ ॥ घसारागुरुधूवो जयगुरुपुरओ जणेण डज्झतो । उच्छलियधूमपडलच्छलेण अवणेइ पावं च ॥ १४ ॥ जे दी देति जिदिमंदिरे सुंदराय भत्तीए । ते तिहुयणभुवण मंतरेक्कदीवत्तणमुर्विति ॥ १५ ॥ तिहुअणपणो पुरओ ठवेंति जं वारिपुन्नपत्ताई । तं नृणं पुवजियदुहाण सलिलं पयच्छति ॥ १६ ॥ परिपागवस समुग्गयविसिद्धगंधेहिं तरुत्ररफलेहिं । जिणपूयं कुणमाणा लहंति मणवंछियफलाई ॥ १७ ॥ बहुभक्खवंजणाउलओयणचरुपागप मुहवत्थूहिं । धन्ना विरइंति बलिं सुहनिहिउक्खणणउत्ति ॥ १८ ॥ For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1.6
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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