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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलंमिवि संबंधे समेऽवि कालाइयंमि एगस्स । संपजइ बहुलाभो मूलंपि पणस्सइ परस्स ॥ २७ ॥ इय एवंविहकजाण कारणं कम्ममेव नायवं । निक्कारणाइं जायंति जेण न विचित्तकजाई ॥ २८ ॥ एवं वुत्ते निच्छिन्नसंसओ पंचसिस्ससयसहिओ। भववरग्गमुवगओ पडिवजइ सोऽवि पवजं ॥ २९ ॥२॥ अह वाउभूइनामो सहोयरो तेसिमेव लहुययरो। पम्मुक्कमच्छरो भत्तिनिब्भरुन्भिन्नरोमंचो ॥ ३०॥ कह तेऽवि तेण विजियत्ति विम्हयं परममुहंतो य । एइ जिणसन्निगासं संसयवोच्छेयमिच्छंतो ॥ ३१ ॥ अह सो जएकगुरुणा पयंपिओ भह ! कीस वहसि तुमं । तज्जीवं तस्सरीरंति संसयं जुत्तिपडिसिद्धं ॥ ३२ ॥ जेण सरीरजियाणं एगंतेगत्तकप्पणे जीवो । नो होज देहनासे घडभंगे तस्सरूवं व ॥ ३३ ॥ देहे य विजमाणे जीएण विवजिएवि जाएजा। चित्ताईया धम्मा न य ते तस्विरहओ दिवा ॥ ३४ ॥ तम्हा भिन्नाभिन्नो विन्नाणघणो सरीरओ जीवो। अन्नोचिय मुणियबो एवं भणियंमि पडिबुद्धो ॥ ३५॥ पंचहिं सिस्ससएहिं सहिओ सोऽवि हु जिणस्स पासंमि । निच्छिन्नपेमबंधो मुंचइ घरवासवासंगं ॥ ३६ ॥३॥ अह इमे तिन्निवि गहियपबजे निसामिऊण दुरुम्मुक्कमच्छरो गच्छामि संसयं च पुच्छामि न सामन्नरूवो सो भय-18 वंति बहुमाणमुबहंतोवियत्तो नाम अज्झावगो गओ जिणसमीवं.वागरिओ य भयवया, जहा-भह ! वियत्त! तुह पंच-1 भूयसत्ताविसओ संसओ, सो य न जुत्तो, जओ पञ्चक्खदिस्समाणा(भू)जलणजलानिलाइणो भूया कहं अवलविङ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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