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AASANSAR
अन्नह संगमयविमुक्कचक्ककडपूयणाइजणिएहिं । मरणं हविज तइयावि मज्झं तिखेहि दुक्खेहिं ॥२॥ जो पुण तणुतणुयत्तणरुहिरइसाराइओ विगारो मे। सो(निरु)वकमत्तणेणं सोऽवि न दोसं समावहइ ॥ ३ ॥ सीहेण तओ भणियं जइवि हु एवं तहावि जयनाह ! । तुम्हावयाए तप्पइ सयलं ससुरासुरं भुवणं ॥ ४ ॥ सिढिलियसज्झायज्झाणदाणपामोक्खधम्मवावारो। चाउबन्नो संघोऽवि लहई नो निव्वुई कहवि ॥ ५॥ ता पसियसु जयबंधव ! अम्हारिसहिययदाहसमणत्थं । उवइससु भेसहं जेण होइ देहं निरोगं भे ॥६॥
एवं कहिए तयणुकंपाए भगवया भणियं-जइ एवं ता इहेव मिंढयग्गामे नयरे रेवइए गाहावइगीए समीवं विचाहि, ताए य ममनिमित्तं जं पुवं ओसह उवक्खडियं तं परिहरिऊण इयरं अपणो निमित्तं निफाइयं आणेहित्ति, इमं निसामिऊण हरिसवसपयट्टपुलयपडलाउरसरीरो सीहो अणगारो समुट्ठिऊण भयवंतं वंदइ नमसइ, तयणंतरं पडिग्गहं गहाय रेवईए गाहावइणीए गिहमुवागच्छइ, साऽवि रेवई तं अणगारं ईरियासमिइप्पमुह चरणगुणसंपन्नं समणधम्म व पञ्चक्खं गिहंमि पविसमाणमवलोइऊण खिप्पामेव आसणाओ अब्भुटेइ, सत्तट्ठ पयाई सम्मुहमवसप्पइ, |सविणयं वंदिऊण य एवं जंपइ-संदिसह भंते ! किमागमणकारणं?, सीहेण भणियं-जं तुमए बद्धमाणसामीं पडुच कयं तं मोत्तण जं अत्तट्ठा निष्फाइयं ओसहं तं पणामेहित्ति, तीए भणियं-भयवं! को एवंविहदिवनाणी जो रहसिकयंपि एवंविहं वइयरं परिजाणइ, मुणिणा कहियं-सयलभावाभावनिभासणसमत्थकेवलावलोयनिलयं भयवंतं वी
४८ महा.
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