SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 579
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AASANSAR अन्नह संगमयविमुक्कचक्ककडपूयणाइजणिएहिं । मरणं हविज तइयावि मज्झं तिखेहि दुक्खेहिं ॥२॥ जो पुण तणुतणुयत्तणरुहिरइसाराइओ विगारो मे। सो(निरु)वकमत्तणेणं सोऽवि न दोसं समावहइ ॥ ३ ॥ सीहेण तओ भणियं जइवि हु एवं तहावि जयनाह ! । तुम्हावयाए तप्पइ सयलं ससुरासुरं भुवणं ॥ ४ ॥ सिढिलियसज्झायज्झाणदाणपामोक्खधम्मवावारो। चाउबन्नो संघोऽवि लहई नो निव्वुई कहवि ॥ ५॥ ता पसियसु जयबंधव ! अम्हारिसहिययदाहसमणत्थं । उवइससु भेसहं जेण होइ देहं निरोगं भे ॥६॥ एवं कहिए तयणुकंपाए भगवया भणियं-जइ एवं ता इहेव मिंढयग्गामे नयरे रेवइए गाहावइगीए समीवं विचाहि, ताए य ममनिमित्तं जं पुवं ओसह उवक्खडियं तं परिहरिऊण इयरं अपणो निमित्तं निफाइयं आणेहित्ति, इमं निसामिऊण हरिसवसपयट्टपुलयपडलाउरसरीरो सीहो अणगारो समुट्ठिऊण भयवंतं वंदइ नमसइ, तयणंतरं पडिग्गहं गहाय रेवईए गाहावइणीए गिहमुवागच्छइ, साऽवि रेवई तं अणगारं ईरियासमिइप्पमुह चरणगुणसंपन्नं समणधम्म व पञ्चक्खं गिहंमि पविसमाणमवलोइऊण खिप्पामेव आसणाओ अब्भुटेइ, सत्तट्ठ पयाई सम्मुहमवसप्पइ, |सविणयं वंदिऊण य एवं जंपइ-संदिसह भंते ! किमागमणकारणं?, सीहेण भणियं-जं तुमए बद्धमाणसामीं पडुच कयं तं मोत्तण जं अत्तट्ठा निष्फाइयं ओसहं तं पणामेहित्ति, तीए भणियं-भयवं! को एवंविहदिवनाणी जो रहसिकयंपि एवंविहं वइयरं परिजाणइ, मुणिणा कहियं-सयलभावाभावनिभासणसमत्थकेवलावलोयनिलयं भयवंतं वी ४८ महा. For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy