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श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥२८३॥
रजिणं मोत्तृणं को अन्नो एवंविहं साहिउं पारह?, एवं सोचा सा पहिहियया सायरं तमोसहं मुणिणो पडिग्गहंमि। पक्खिवइ, तओ सा तेण भावविसुद्धभेसहप्पयाणेण देवाउयं कम्मं निबंधइ. देवा य तीसे गिहंमि कणगगर्मि नि-1|
रोगशान्तिः
| गोशालक सिरंति, महादाणं महादाणंति घोसंति, सीहोवि साहू तं गहाय भयवओ समप्पेइ, तं च भयवं आहारेइ, आहा-51 रिए य तहिं ववगयपित्तजरसमुत्थविगारो अमयपुनसरीरोव समहिगसमुम्मिलियजच्चकंचणसच्छहच्छवी वीरो विराइउं पवत्तो। अह पडिहयरोगे बद्धमाणे जिणिदे हरिसवियसियच्छो सवसंघोऽवि जाओ । असुरसुरसमूहा वद्धियाणंदभरा सह नियरमणीहिं नचिउं संपयत्ता। ___ गोयमसामीवि गणहरो महावीरं वंदिऊण पुच्छइ-भयवं! तुभं कुसिस्सो गोसालो कालं काऊण कहिं उववन्नो, |भयवया भणियं-अचुयंमि देवलोगे बावीससागरोवमाऊ देवो जाओत्ति, गोयमेण भणियं-भयवं! कहं तहाविहमहा-18 पावकरणेऽवि एवंविहदिवदेविडिलाभो समुप्पण्णोत्ति?, तओ सिट्ठो सामिणा से सवोऽवि मरणसमयसमुप्पन्नातुच्छ
पच्छायावाई वुत्तंतो, पुणोऽवि गोयमेण भणियं-भयवं! तओ ठाणाओ सो आउक्खएण कहिं उववज्जिही?, कइया ६ वा सिद्धिं पाविहित्ति ?, भगवया जंपियं-गोयम ! निसामेहि-इहेव जंबुद्दीचे दीवे भारहे वासे विंझगिरिपायमूले 3॥२८३॥ है। पुंडाभिहाणंमि जणवए सुमइस्स रन्नो भद्दाभिहाणाए देवीए गम्भे सो गोसालो तत्तो चवित्ता पुत्तत्ताए पाउन्भवि
स्सइ, तओ नवण्हं मासाणं समहिगाणं समइक्ताणं पजाइही, तस्स य जम्मसमए तत्थ नयरे सम्भंतरबाहिरे ।
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