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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीमहा० चरित्रे १ प्रस्तावः ॥५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भयवं ! किमेवमुवइसह पाचनिरयाण बुद्धिरहियाणं । पञ्चक्खपसूणं पिव अम्हाणं दढमजोग्गाणं ॥ ६८ ॥ गुरुणा भणियं मा वयसु एंरिसं जेण जोग्गयां तुज्झ । जाणिजइ संपन्ना संपइ पञ्चखलिंगेहिं ॥ ६९ ॥ कहमण्णहमेवंविहमहाडवीनिवडिया तए अम्हे । दिट्ठा पहप भट्ठा गाढस्समसुढिय (सिढिल ) सव्यंगा १ ॥७०॥ कह तत्यवि दंसणमेत्तओऽवि चिरदिट्ठबलहजणे व्त्र । पुलयपडलाणुमेओ उप्पण्णो तुह पमोयभरो १ ॥ ७१ ॥ कह वा भोयणसमओवणीयनियभोयणेण दाणमई । जाया अम्हाणुवरिं खुहापिवासाभिभूयाणं ? ॥ ७२ ॥ एवंविहपरिणामो उप्पज्जइ नेव पुण्णरहियाणं । एवंविहा य अतिही न य चक्खुपहं पवज्जंति ॥ ७३ ॥ रयणनिहाणं किं रोरमंदिरे किं मरुंमि कप्पतरू । कत्थवि थलंमि जलकमलसंभवो हवइ कइयावि १ ॥७४॥ ता एवंविहविघडंतवत्थु संघडणलिंगसद्धेया । कहमिव तुज्झ न सद्धम्मजोग्गया भद्दमुह ! होज्जा १ ॥ ७५ ॥ जेणेरिस सामग्गी निरवग्गहपुण्णपगरिसवसेण । सिवलच्छिपेच्छियाणं निच्छयओ घडइ मणुयाणं ॥ ७६ ॥ किंच- आरियखेत्तुप्पत्ती कुलमकलंकं नरत्तसंपत्ती । निरुवहयरूवलाहो रोगोरगदूरविगमो य ॥ ७७ ॥ आउयमवि पडिपुण्णं कलाकलावंमि कोसलं विमलं । साहूहि समं जोगो एत्तियमेत्तं तए पत्तं ॥ ७८ ॥ तो एयरंप पण्णं व सकम्मपवणपडिहणिया । संसारंमि भमंता अनंतसत्ता ण संपत्ता ॥ ७९ ॥ तुम पुण सचमिमं उवलद्धं पुण्णपगरिसवसेणं । ता एत्तो निरुवममोक्खसोखफलदाणदुल्ललियं ॥ ८० ॥ For Private and Personal Use Only सम्यक्त्वं योग्यता ॥ ५ ॥
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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