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श्रीगुणचंद महावीरच० ६ प्रस्तावः ॥ २०० ॥
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सिद्धो य बहुप्पयारं तेण एसो । इभ य तत्थेव पुरे गंगदत्तसेडियो कन्नगा अप्पडिमरूवजोवणाइगुण कलावकलिया | कणगवइ सही जणपरिवुडा उज्जाणंमि कुसुमावचयं कुणंती सिरिदत्ताभिहाणं वणियजुवाणमवलोइऊण मयणुम्मुकसरविसरपहारजज्जरियसरीरा कहकहवि पडिनियत्तिऊण सगेहे निसट्टं निवडिया सुहसेज्जाए, वाउलतं च से मुणिऊण मेलिओ गेहजणो, पुट्ठा सरीरवत्ता, अलद्धपडिवयणेण य तेण कओ तक्कालोचिओ विही, सो य जुयाणो तसणमेत्तेणवि हरियहियओ तक्कालवियंभमाणमयणजलणजाला कला वकवलियसरीरो कहिंपि र अपायमाणो तमेव कुवलयदलदीहरच्छि चिंतंतो अच्छिउं पवत्तो, नवरं पुच्छिओ एसो एगाए पचाइगाए बच्छ ! किमेवं सुन्नचक्खुक्खेवो लक्खिज्जसित्ति, तेण भणियं-भयवइ ! किं कहेमि ?, अवलाएवि हुंतीए विसहृकंदोहदीहरच्छीए। हरियहिययस्स बढइ विहलं चिय मज्झ पुरिसत्तं ॥ १ ॥ एत्तियमेत्तेणं चिय न ठिया सा छण मयंक बिंबमुही । अवहरिउमिच्छर धुवं संपइ मह जीवियद्यपि ॥ २ ॥ ता एव ठिए भयवइ ! तमुवायं किंपि लहु विचिंतेसु । पसमियमणपरितावो जेणेस जणो सुहं वसह ॥ ३ ॥ पञ्चाइगाए जंपियं- पुत्त ! फुडक्खरं साहेसु, तओ तेण कहिओ कणगवईदंसणवत्तंतो, तीए भणियं - पुत्त ! वीसत्थो होहि, तहा करेमि जहा तीए सह निरंतरं संपओगसुह मणुहवसि, तेण वृत्तं-जइ परं तुह पसाएणंति, भणियावसाणे गया सा गंगदत्तसिट्टिणो गिद्दे, दिट्ठा य सदुक्खेण परियणेण संवाहिजमाणसरीरा कणगवई, भणियं चडणाए - भो! किं कारणं सरीरे विदुयत्तणमिमीए ?, परियणेण भणियं भयवइ ! न मुणेमो, तीए वृत्तं जइ एवं ता अवसरह,
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सूरसेनचारुदत्तकनकवती
भवः.
॥ २०० ॥