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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org इत्थेव भवं विसिट्टभत्तीऍ पत्तदाणेणं । पाविजइ धणरिद्धी समुदुरा किं पुणऽण्णभवे ? ॥ १ ॥ तोचि रुंद भवन्नो गोपयं व लीलाए । दुक्करतवविरहेणचि लंघिजर पुन्नवंतेहिं ॥ २ ॥ लग्भइ तिलोयलच्छी लग्भइ सङ्घपि कामियं सोक्खं । एकं चिय नवि लग्भइ सुपत्तदाणं जयपहाणं ॥ ३ ॥ नापि तवोचि हवेज निष्फलं कहवि दिवजोएणं । दिनं सुपत्तदाणं वभिचरइ न नूण कश्यावि ॥ ४ ॥ इय जाणिऊण कलाणकोसकलणेक्कपञ्चले दाणे । न करेजा नणु जत्तं को अत्तसुहं समीहंतो ? ॥ ५ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अह जयगुरू तत्थ पारिएण बहिया विहरिउमारद्धो । अन्नया य गामाणुगामेण गओ वहुमेच्छजणसंकुलाए दढभूमी, तत्थ य पेढालाभिहाणस्स गामस्स वहिया पेढालुजाणे पोलासचेइए अट्टमेणं तवोकम्मेणं अपाणएणं ईसिं ओणयकाओ अचित्त लुक्खपोग्गलनिवेसियानिमेसनयणो गुत्तसबिंदियगामो सुप्पनिहियगत्तो अहोपलंचियभुयदंडो सुसिलिट्टसंठवियनिचलचलणो दुरणुचरं कायरनरुद्घोसकरं एगराइयं महापडिममारभेइ । एत्यंतरे सोहम्माए सभाए नाणामणिरयणभासुरकिरणपज लंतमहंत सिंहासन मुहासीणो अगसुरसुरंगणाकोडा कोडि संवुडो किरीडाइवराभरणपहा विच्छुरियदेहो पुरंदरो तहा पडिमा पडिवनं जयनाहमोहिए पलोइऊण तक्खणविमुक्का| सणो अचंतभत्तिभरनिब्भरंगो पुणरुत्तनिडालताडियमही बट्टो पणमिऊण आणंदसंदोहसंदिरीए सम्भूयत्थगुणगणुउभासण समत्थाए परमपवखवाय सुंदराए गिराए सुचिरं संधुणिऊण य निस्सामन्नं सामिणो असामन्नगुणपन्भारं हि For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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