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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ५ प्रस्तावः वृत्तं. ॥१६४॥ तयणंतरं च कथवि एत्तियकालं परिभमिय इमिणा । दिवविमाणारूढा अहयं एसावि मह भइणी ॥८॥ विद्यासिद्धआगिट्टिसत्तिणा आणीयाओ संपइ पयंडदंडेण । सिरिपञ्चयगमणहा गेहाओ नीहरंतीओ ॥९॥ एत्तोऽणंतरमेवं जमेस वागरइ तं करेमोत्ति । बुज्झइ खंधेण हडी सचं चोरस्स बलियस्स ॥१०॥ एयमायन्निऊण गोभद्देण चिंतियं-अहो रक्खसाणंपि भेक्खसा अत्थि, जमेवंविहजोगिणीजणोवि एवं आणानि संमि वट्टाविजइ, अओ चिय भणिजइ-बहुरयणा वसुंधरा भगवई, एत्तोच्चिय वरगुणगणनिहिणोऽवि न गवमुच्च-18 है हंति सप्पुरिसा, चंदलेहाए भणियं-अहो महायस! एवं किर साहियवं, जइ एस विजासिद्धो एत्थ पत्थावे मम भइणीचंदकंताए न बंभचेरभंगं करेंतो ता इमीए सयंपभा नाम महाविजा साहिया हुंता, मम पुण तुमए सीलखंडणं अकुणमाणेण तस्साहणविही अज्जवि पडिपुन्नो चेव वट्टइ, सत्तरत्तमेत्तेण य चिंतियत्थसंपत्ती भविस्सइ, ता भो महाणुभाव ! जं पुरा पुच्छियं तुमए जहा कहं मए जोइया सबकामुयलाभसिद्धीयत्ति तत्थ एस परमत्थो, गोभ-14 देण भणियं-सुयणु ! किमत्थ भणियचं? पीडंतु गहा विहडंतु संपया पडउ दुक्खदंदोली । सयणावि होंतु विमुहा तहवि न मुंचामि सञ्चरियं ॥१॥ ॥१६४ ॥ नियजीवस्स खलस्सव जहिच्छचारेण दिन्नपसरस्स । दुक्खेण मामि ! सम्मग्गठावणं जइजणो कुणइ ॥२॥ चंदलेहाए भणियं-एवमेयं, किं वन्निज्जइ तुम्ह निम्मलगुणाणं जस्स एरिसं जिइंदियत्तणं १ एवंविहो अजककरण-1 For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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