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ताहे इमेण भणियं देवि! पसीयसु ममेत्तिएणावि । पडिवज्जसु सिरकमलेण पूयणं होउ सीसेण ॥ ३ ॥ देवीऍ तओ भणियं पुत्तय ! तुह साहसेण तुट्ठम्हि । वरसु वरं एत्ताहे पज्जत्तं देहपीडाए ॥ ४ ॥
तओ एएण भणियं - सामिणि ! जइ सञ्चं चिय तुट्टासि ता जं तुमए पुत्तत्ति अहं वागरिओ एसो चिय मम बरो, एत्तो य पुत्तबुद्धीए मम पेच्छेज्जासित्ति भणियावसाणे दाऊण सबसमीहियत्थकरं रक्खावलयं पडिवजिऊण तचयणं अहंसणमुवगया कच्चायणी, एसोऽवि पावियतिलोयरजं पिव अत्ताणं मन्नमाणो रक्खावलयमुवहंतो सगच्चं अक्खलियगमणो सवत्थ वियंभिउमाढत्तो । अविय—
न गणइ नरवइवग्गं नय भीमभएवि उच्चहइ कंपं । सच्छंदलीलगमणो जमपि उवहसइ सबलेणं ॥ १ ॥ अंतरे निवस उवभुंजर कुलगंयावि विलयाओ । आगरिसह दूरगयंपि वत्थु वरमन्तसत्तीए ॥ २ ॥ जभिई चिय कच्चाइणीए एयस्स वाहुमूलंमि । बद्धं रक्खावलयं तत्तो चिय चिंतियं लहइ ॥ ३ ॥ अह अन्नया कयाई हिंडतो एस महियलं सयलं । संपत्तो जालंधरपुरंभि रामाभिरामंमि ॥ ४ ॥ दिट्ठा य जोगिणीजणमज्झगया विहियपवरसिंगारा । अह तत्थ चंदकंता एसा मम जेट्ठिया भयणी ॥ ५ ॥ ताहे हठेण वररुवजोचणाइसयरंजिओ एसो । कुणइ पसंगमिमीए सद्धिं सद्धम्मनिवेक्खो ॥ ६ ॥ ठाऊण कवय दिणे सच्छंदं विविहदिवकीलाहिं । अणवद्वियमणपसरो अमुणिजंतो विणिक्खंतो ॥ ७ ॥
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