SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ताहे इमेण भणियं देवि! पसीयसु ममेत्तिएणावि । पडिवज्जसु सिरकमलेण पूयणं होउ सीसेण ॥ ३ ॥ देवीऍ तओ भणियं पुत्तय ! तुह साहसेण तुट्ठम्हि । वरसु वरं एत्ताहे पज्जत्तं देहपीडाए ॥ ४ ॥ तओ एएण भणियं - सामिणि ! जइ सञ्चं चिय तुट्टासि ता जं तुमए पुत्तत्ति अहं वागरिओ एसो चिय मम बरो, एत्तो य पुत्तबुद्धीए मम पेच्छेज्जासित्ति भणियावसाणे दाऊण सबसमीहियत्थकरं रक्खावलयं पडिवजिऊण तचयणं अहंसणमुवगया कच्चायणी, एसोऽवि पावियतिलोयरजं पिव अत्ताणं मन्नमाणो रक्खावलयमुवहंतो सगच्चं अक्खलियगमणो सवत्थ वियंभिउमाढत्तो । अविय— न गणइ नरवइवग्गं नय भीमभएवि उच्चहइ कंपं । सच्छंदलीलगमणो जमपि उवहसइ सबलेणं ॥ १ ॥ अंतरे निवस उवभुंजर कुलगंयावि विलयाओ । आगरिसह दूरगयंपि वत्थु वरमन्तसत्तीए ॥ २ ॥ जभिई चिय कच्चाइणीए एयस्स वाहुमूलंमि । बद्धं रक्खावलयं तत्तो चिय चिंतियं लहइ ॥ ३ ॥ अह अन्नया कयाई हिंडतो एस महियलं सयलं । संपत्तो जालंधरपुरंभि रामाभिरामंमि ॥ ४ ॥ दिट्ठा य जोगिणीजणमज्झगया विहियपवरसिंगारा । अह तत्थ चंदकंता एसा मम जेट्ठिया भयणी ॥ ५ ॥ ताहे हठेण वररुवजोचणाइसयरंजिओ एसो । कुणइ पसंगमिमीए सद्धिं सद्धम्मनिवेक्खो ॥ ६ ॥ ठाऊण कवय दिणे सच्छंदं विविहदिवकीलाहिं । अणवद्वियमणपसरो अमुणिजंतो विणिक्खंतो ॥ ७ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy