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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्तावः ॥ ३१३ ॥ www.kobatirth.org तेणावि सायरे पवाहियाई जाणवत्ताई, सिग्घवेगेण गंतुं पयत्ताणि, कमेण पत्ताइं कलहदीवं, उत्तारियं तेहिंतो भंड, विकिणियं च, जाओ बहुओ लाभो, ठिओ य कइव्यवासराई, गहिया मणिमोत्तिय संखपट्टसूत्तपमुहपहाणकयाणगाई, तओ पयट्टो तामलित्तिसंमुहं, इंतस्स य जलहिमज्झे दंसिओ निज्जामगेहिं तस्स रयणदीवो, को उहल्लेण पुच्छिया अणेण - अरे किमिह उप्पञ्जइ ?, निजामगेहिं भणियं - कक्केयण पउमरागवजिंदनीलाइणो महारयणविसेशा ते इह उप्पज्जंति, तेसिं समीवधरणमेत्तेण विद्दवइ रुंददारिद्दोवद्दवो न पासंमि परिसप्पs दप्पु भडो सप्पो, न नियडमकमइ चंडावि डाइणी, खिल्लियमुहोब न कडुयमुलवइ खलयणोचि, तओ अपरिकलियविणासेणं जायतग्गहणगाढाभिलासेण भणियं वासवदत्तेण - अहो निजामगा! जइ तत्तो हुत्तं नेह मह नावं तो चउग्गुणं देमि मे विर्त्तिं, तेहिं भणियं निज्जर, केवलं उवलपडलाउला भूमी, जइ कहवि नावा भंगं पाविजा ता सवनासो जाएजा तओ ईसि विहसिऊण वासवदत्तेण भणियं जर गयणं निवडेज्जा पल्हत्थेज्जा रसायले पुढवी । कुलगिरिणो य सपक्खा होउं व महीए वजेजा ॥ १ ॥ जलनिहिणो वा वेलाए. महियलं सङ्घओवि बोलिजा । जणणी वा नियपुत्तं हणेज पढमप्पसूर्यपि ॥ २ ॥ तारन्नपि सुन्नं होज्य जयं किं तु हवइ नो एयं । नय सङ्घहावि अघडंतमेरिसं चिंतिउं जुत्तं ॥ ३ ॥ जो पुणइय चिंताए पट्टए सो धुवं महामुद्धो । करकमलगोयरगयं लच्छि हारेज किं चोजं ? ॥ ४ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only इच्छाऽपरि माणे वासवदत्त दृष्टान्तः. ॥ ३१३ ॥
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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