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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता परिचमि एए वच्चामि समंदिरंमि एत्ताहे । दुन्नयपरनरजोगे मरणंपि हु आवड जेणं ॥ ४ ॥ अहवा गुरुवणं घिऊण गेहंमि वञ्च्चमाणस्स । संपज्जइ दुधिणओ तम्हा जं होइ तं होउ ॥ ५ ॥ इति परिभाविंतस्स ते सयलं गेहसारं मुसिऊण नीहरिया मंदिराओ, गया उज्जाणे, विविपयारेहिं कीलि| उमारद्धा, वसुदत्तोऽवि गुरुवयणरज्जुसंदाणिओ अचंतविरागमुहंतो तेसिमेव समीवे चिट्ठा, एत्थंतरे समुग्गयं मायंडमंडलं, विहडियं तमकंड, सा य थेरी पाहुडं गहाय गया नरवइसमीवे, कहिओ सयलो जहावित्तो रयणिवइयरो, | राइणा भणियं - अचंतगंभीरयाए नयरस्स को वा कहिं वा नज्जिही ?, तीए भणियं देव ! ते मए सचेऽचि मऊरपिच्छेण पाएस अंकिया अच्छंतित्ति वुत्ते राइणा आणत्ता सवत्थ पुरिसा, सुनिऊणं गवेसंतेहि य तेहिं उज्जाणसं|ठिया दिट्ठा ते सवेऽवि, उवलक्खिया इंगियागारेहिं, उवणीया य नराद्दिवस्स, तेणावि वाहराविया थेरी, तीएवि वसुदत्तं विमोत्तूण अन्ने परिकहिया चोरत्तणेणंति, रन्ना भणियं -कहमेसो चोरमंडलीमज्झगओऽवि न चोरो, थेरी भणइन चलणेसु लंछिओत्ति, राइणा भणियं-जह अदुट्ठो ता मुयह एयं वसुदत्तो भइ - देव ! कहमहं दुट्ठसंसग्गीए वि न दुट्ठो जं ममावि न कुणह निग्गहं, रन्ना कहियं-भद्द! जइ एयंपि जाणसि ता कीस दुट्ठसंसरिंग मूलाओ चिय न उज्झेसि ?, तेण भणियं - देव! दिवं पुच्छह, एत्थंतरे मुणियजहावयितवइयरेण भणियमेगेण पुरिसेण - देव ! एस पवज्जं पडिवजिउ कामो भावपरावत्तिनिमित्तं अम्मापियरेहिं सिणेहाणुबंध कायरेहिं संपयं चेत्र दुल्ललियगोट्ठीए For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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