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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीगुणचंद महावीरच ० ४ प्रस्तावः ॥ १०५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr रयणी ता अणुजाणह ममं गमणायत्ति, राइणावि पिययमाविओगविदुरेण एस चेव अज्ज दीहरनिसाए विणोयकारी हवउत्ति परिचिंतयंतेण भणिओ सो-भद्द! बीसत्थो इहेब चिट्ठसु, नियपहाणपुरिसेहिं रक्खावइस्सामि तुह जाणवत्तं, जं देवो आणवेइत्ति भणिऊण पडिवन्नं तेण, विसज्जिया य राइणा नियपहाणपुरिसा पवहणरक्खणत्थं, एत्यंतरे उट्टिया दोषि कुमारा, विन्नत्तं च तेर्हि, जहा-ताय ! अदिट्ठपुवं अम्ह पवहणं, गाढं च कोउयं तदंसणे, ता अणुजाणउ ताओ जेण गच्छामोत्ति, तन्निच्छयमुवलब्भ अणुन्नाया य नरिंदेण, गया य अंगरक्खनरपरिक्खित्ता ते जाणवत्ते, तं च इओ तओ निरिक्खिऊण पत्ता तत्थेव । अह पच्छिमरयणिसमए पडिबुद्धा परोप्परं वत्ता काउमारद्धा, खणंतरेण लहुएण भाउणा पुट्ठो जेट्ठो भाया-अहो भाय ! कहसु किंपि अपुत्रं अक्खाणयं, इह ट्ठियाण न झिज्जर कहमवि विभावरी, जेठ्ठभाउणा भणियं-भद्द! किमन्त्रेण अक्खाणयसवणेण ?, एयं चिय अप्पणोतणयं अक्खाणयमपुत्रं निसुणेहि, तेण जंपिगं एयमवि साहेहि, तओ करकलियकुसुममाला जह जणणी रायमग्गमणुपत्ता । जह बलिया नो पुणरवि जह नयरे मंग्गिया बहुसो ॥१॥ जह ताओवि दुहत्तो म्हेहिं समं गओ नईकूले । जह परतीरनिरूपणकरण सलिलंमि ओगाढो ॥ २ ॥ जह सरियनीरपूरप्पवाहिओ दूरदेसमणुपत्तो । जह अम्हे गोउलिएण गोउलं पाविया विवसा ॥ ३ ॥ जह बुद्धिं संपत्ता रायउले जह गया तओ अम्हे । रायावलोयणत्थं जह विन्नाया य तारणं ॥ ४ ॥ For Private and Personal Use Only दे हिलव णिजो जयः न्त्यामाग मनं. ।। १०५ ।।
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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