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श्रीगुणचंद महावीरच. ८प्रस्ताव
क्षत्रियकुंडे समव
सरण,
२६०॥
अह पुखदुवारेणं पविसित्ता सुरगणेण थुवंतो। सिंहासणे निसनो पुवाभिमुहो जिणवरिंदो ॥५॥ एक्कारसवि गणहरा केवलमणपज्जवोहिनाणी य । चउदसदसपुचीविउविइड्डीपत्ता य मुणिवसभा ॥६॥ उद्घट्टिया उ वेमाणियाण देवीओ तय समणीओ। ठायंति जिणं नमिउं दाहिणपुबंमि दिसिभाए ॥ ७॥ अह दाहिणदारेणं पविसित्ता विणयपणयदेहाओ। भवणवइवाणमंतरजोइसदेवाण देवीओ॥८॥ काउं पयाहिणं भुवणबंधुणो धम्मसवणलोभेण । निसियंति पहिठ्ठाओ दाहिणपञ्चत्थिमविभागे ॥९॥ तत्तो पच्छिमदारेण पबिसिउं पवरभूसणसणाहा । भवणवइवाणमंतरजोइसिया हरिसपणयसिरा ॥ १०॥ विहिणा जिणं नमंसिय गणहरकेवलिपमोक्खमुणिणो या निविसंति जिणाभिमुहा उत्तरपचत्थिमदिसाए ॥१॥ उत्तरदिसिदारेणं तत्तो पविसित्तु दिवरूवधरा । वेमाणियसुरवग्गा नरा य नारीजणा य तहा ॥ १२॥ पम्मुक्कपरोप्परवेरमच्छरा धम्मसवणतल्लिच्छा । उत्तरपुरथिमि य ठायंति दिसाविभागंमि ॥ १३ ॥ न कुणंति हासखेडाई नेव चक् खिवंति अन्नत्य । चित्तलिहियव सच्चे जिणिंदवयणं पलोयंति ॥ १४॥ तयणंतरं च बीए पायारम्भंतरे तिरियवग्गो। हयमहिससीहपमुहो उज्झियवेरो सुहं वसइ ॥१५॥ कहं चिय?दिणयरकरसंतत्तं भुयंगमं छायए सिहंडेहिं । तंडविएहिं सिहंडी करुणाए विमुक्ककुविगप्पे ॥ १६ ॥ कंडयइ दसणकोडीए कुंजरो केसरिस्स मुहभागं । धावारइ सीही हरिणसावयं दढछुहाभिहयं ॥१७॥
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5॥२६॥
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