________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अहवा कनिसकारिणा असा लज्जा वयापभीरभावमन्भुव
MOREMEDABADAAAA
नउण इमीए एए कुवलयदलदीहरच्छिविच्छोहा । सोढुं सका निकिवमयरद्धयभावसंवलिया ॥२॥ रइरंभाहरिदइयातिलोत्तमापमुहदिवनारीओ। मन्ने इमीऍ रूवेण लजियाओ न दीसंति ॥ ३॥ विनाणं झाणं सत्थकोसलं देवयाण पूया य । विहलं सबंपि इमं जइ एयमहं न पावेमि ॥४॥ केवलमुवायओ संगमेऽवि एयाए कहवि दिछवसा । सवत्थ वित्थरंतो अवन्नकाओ दुसरोहो ॥ ५ ॥
अहवा किमणेण ?-हरिहरहिरण्णगन्मा वसिट्ठजमदग्गिवा(चा)सदुधासा ।
हरिणच्छिवयणनिहेसकारिणो जइ पुरा जाया ॥६॥ ता कि अम्हारिसमुणिजणस्स सुद्रुवि विसिद्धधम्मस्स । लज्जा वयणिज वा ? ता पजत्तं विगप्पेहिं ॥७॥ जुम्म । तह कहवि करेमि जहा इमीए सद्धिं समागमो होइ । इय निच्छिऊण गंभीरभावमन्भुवगओ एसो ॥८॥
आगारसंवरं च काऊण जहापउत्तनाएण भोत्तुं पवत्तो, अह तकालवियंभियमयणगुरूवएसबसओ इव जाया से बुद्धी, जहा विषयारेमि एवं सेट्टि, जेण वयणिजविरहिओ एयाए लाभो हवइत्ति, एवं संपेहिऊग सेटिणो पलोय. माणस्स दुस्सहदुक्खावेगसंसूयगो विमुको अणेण सिकारो, ससंभमेण निरूविओ सेहिणा, खणंतरंमि य गए पुणोऽवि पुवक्कमेण पयडियलोमुद्धोसनिन्भरे सवयणभंगभासुरे दोचं तचं च विमुकमि सिक्कारे अहो किपि अचंतमणिहमावडिहित्ति विभावितो जाव सेट्ठी अच्छद ताव सो मुहसुद्धिं काऊग समुडिओ भोयणमंडवाओ, उपविठ्ठो अन्नत्थ, सेट्टीवि
ARMACAAAAA
५२ महा०
For Private and Personal Use Only