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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करपुरिसपरिखित्तो पवररहनिसन्नो गओ समोसरणं, दूराओ चिय ओयरिओ रहाओ, परमायरेण बंदिजो जिणो, तओ अणिमिसाए दिट्ठीए सामिमुहमवलोयमाणो पजुवासिउमारद्धो । भगवयावि पयट्टाविया धम्मदेसणा। कहं चिय?करयलपरिगलियजलं व गलइ पइसमयमेव जीयमिमं । वाहिजरायंकाविय देहं दूमंति निचपि ॥१॥ अइबहुकिलेससमुवजियावि विजय चंचला लच्छी। पियपुत्तसयणजोगोऽवि भंगुरो जलतरंगोछ ॥२॥ विसयपिवासा पिसाइयव दुन्निग्गहा तह कहंपि । वामोहइ जह थेवंपि नेव संभवइ वेरग्गं ॥३॥ अवरावरगिहवावारविरयणावाउलो सयावि जणो । कोणासमुहं वच्चइ अणुवजियधम्मपाहिज्जो ॥४॥ एसो चिय मुद्धजणस्स विन्भमो सबहाऽविय अजुत्तो। पजंते धम्म भोत्तुं भोगे चरिस्सामो ॥५॥ जं थेरत्ते पत्ते हयंमि सर्विदियप्पयामि । अच्छउ दूरे करणं दुलहं धम्मस्स सवर्णपि ॥६॥ किं बहुणा भणिएणं?, जो बालत्तेऽवि नायरइ धम्म । संगामसमयहयसिक्खगोठ सो सोअइ विरामे ॥७॥ इय जयगुरुणा नीसेससत्तसाहारणाए वाणीए । मोक्खसुहमूलबीयं कहियं सद्धम्मसबस्सं ॥ ८॥ इमं च अवक्खित्तचित्तो सवणंजलीहिं पाऊण जमालिकुमारो हिययंतो समुलसंतवेरग्गवासणो भयवंतं पणिवइऊण भालयलनिचलनिवेसियपाणिपंकयकोसं भणिउं पवत्तो For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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