________________
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
विनायगमणवइयरेणं पडिरुद्धो तिविट्ठकुमारेण अयलपरिगएणं, भणिओ य
रे याहम ! अइदुटु चिट्ठ पाषि? कत्थ वचिहिसि । पेच्छणयरंगभंग तइया काउं मम समक्खं? ॥१॥ निब्भग्ग ! गरुयराउलसेवणओऽविहु पभूयकालेणं । पत्थावापत्थावं न मुणसि किं सिक्खिओ तंसि? ॥२॥ नियजण! वयणविन्नासपमुहगुणवित्थरेण उवहससि । सक्कगुरुंपि विदूकुह अन्नेव वियडिमा तुज्झ ? ॥ ३॥ ता पाव! पावसु फलं सदुठचेट्रियतरुस्स दुविसह । सुमरेसु य इट्ठदेवं माऽकयधम्मो धुवं मरसु ॥४॥ इय भणिऊण तिबिट्ट निट्ठरमुट्टिप्पहारमुग्गिरिउं । जा हणइ नेव दूयं अयलेणं जंपियं ताव ॥५॥ भो भो कुमार! विरमसु गोहचंपिव विमुंच एयवहं । या रंडा भंडा कयावराहावि अहणणिजा ॥६॥ ताहे भणिया पुरिसा! रे रे सिग्धं इमस्स पावस्स । मोत्तूण जीवियव्यं सेसं अवहरह वत्थाई ॥७॥ पुरिसेहिं तओ कुमरस्स वयणओ लट्ठिमुट्ठिपभिईहिं । गहिऊण तं समत्थं धणाइयं अवहडं तस्स ॥ ८॥ भयभरविहुरत्तणओ नियंसियं वत्थमविय से गलियं । भूमीऍ निवडणेणं धूलीए धूसरियमंग ॥९॥ अह खमणगोब मुणिउन्य पंडरंगोव्य तक्षणं जाओ। सो चंडवेगदूओ नियजीवियरक्खणढाए ॥१०॥ सेसो पुण परिवारो जीवियकंखी य पहरणे मोत्तुं । सयलदिसासु पलाणो दसणमेत्तेऽवि कुमरस्स ॥११॥ एवं च लुचविलुंचियं काउं यं वलिया कुमारा, जाणिया य वत्ता पयावइणा, तओ भीउविग्गो चिंतिउमाढत्तो
For Private and Personal Use Only