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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता गोअम! जं तुमए पुवं पुढोम्हि कह भवम्मि जिया । पुणरुत्तमणतदुहोहपीडिया परिभमंतित्ति ?, ॥४॥ तत्थेमं चिय नणु मूलकारणं जन्न सहरिसं विरई । सम्मत्तगुणसणाहं भणियविहाणेण गिण्हंति ॥ ५॥ एवं कहिए तित्थंकरेण गिहिधम्मवित्थरे तुट्ठो। पयवीढलीढसीसो पढमो सीसो जिणं थुणइ ॥६॥ जय तियलोयपियामह ! वम्महमाहप्पनिद्दलणधीर !। ललणासिंगारुन्भडकडक्खखेवेऽवि अक्खुम्भ ! ॥१॥ भवगत्तपडंतजणोहसरण रणरहिय महिय तियसेहिं । नायकुलंबरपुन्निममयंक ! जय जय निरायंक! ॥२॥ एगेणवि जह तुमए पयत्थसत्था जए पवित्थरिया। तह अन्नतिथिएहि न समत्येहिवि मणागपि ॥३॥ तुह अत्थसारलेसं मन्ने रोरव तित्थिया घेत्तुं । जाया अनन्नमाहप्पगचिया नाणविभवेण ॥४॥ जंन हणिजइ दिणयरकरपसरपईवजोइरयणेहिं । चित्तम्भंतरलीणं तंपि तमं पहु! हयं तुमए ॥५॥ असरिसं जयगुरुगुरुभत्तिपभावनिस्सरंतरोमंचो। इय थोऊण निषिट्ठो सट्ठाणे गणहरवरिठ्ठो ॥६॥ एत्यंतरे दुवालसवयदेसणानिसामणसमुप्पन्नमववरग्गेहि केहिवि पडिवन्ना देसविरई, अन्नेहिं उज्झियाई मिच्छत्तकायबाई, केहिवि गहिया सबधिरई । इओ य सेणियनरिंदो थोवमेत्तपि विरई काउमसमत्थो तित्थाहिवं पणमिऊण भणिउमाढत्तो-भयवं! जो अचंतमहारंभो महापरिग्गहो सबहा विरइरहिओ सो कहं भवनवं नित्थरिस्सइ १, जयगुरुणा भणियं-भो नरिंद! सेणिय ! देसविरई वा सबविरई वा काउमपारयंतो सम्मत्ते निच्चलो होजा, एवं ASTROCHERROCCOL यणेहिं । चितनिधिटो सहाई, अन्नेहि For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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