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प्रस्तावना
श्रीगुणचंद महावीरच.
छे, तेम सम्यक्त्वनो योग मळतां ज ते तारकोना सहज सद्गुणो अतिद्दढ, अतिविकसित अने उर्ध्वमुखी बनी रहे छे. वरबोधि (श्रेष्ठ सम्यक्त्व)ने पामनारा आ तारकना आत्माओ प्राय: करीने वणथंभी अध्यात्म साधना साधता साधता मोक्षमार्गना प्रकाशन द्वारा जगतमां अनन्य उपकार करी वहेलामां वहेला स्वध्येयनी सिद्धिरूप मोक्षने प्राप्त करता होय छे. छतांय कोई कोई श्री तीर्थंकरना आत्माओनी भवस्थिति ज लांबी होय तो सम्यक्त्व प्राप्ति पछी पण तेओने ठीक ठीक संसार परिभ्रमण करवू पडे छे. आपणा आराध्यप्रभु श्री महावीर देवना आत्मा माटे आबु ज बन्युं हतुं. सम्यक्त्व प्राप्त कर्या पछी पण प्रभुनो आत्मा चिरकाळ संसारमा भम्यो छे, अनेक बखत । एकेन्द्रियपणामां पण गयो छे अने नरकमां पण गयो छे. कर्मपरिणतिनी विचित्रताना कारणे प्रभुना सम्यक्त्व प्राप्तिथी सिद्धिप्राप्ति सुधीना सुदीर्ध समयगाळामां आरोह-अवरोह घणा आव्या छे... परमात्मानो जीव केवा उच्च अध्यवसायोनी भूमिकाए पहोंच्यो त्यारे सम्यक्त्व पाम्यो अने तेमां वळी पाछा कर्मना आक्रमणो आव्या, तो परमात्मानो जीव पण केवू चूक्यो ! गुणस्थानकोथी पतन पामता ते केवु सद्गुणधन गुमावी बेठो ! अने एना परिणामे ते तारकना आत्माने पण संसारमा केबुं परिभ्रमण करवू पड्यु ! आवा आवा अनेक पासाओ परमात्मानां जीवननु वाचन करवाथी जाणवा मळे छे, एटलुंज नहि पण ए वाचन आपणा आत्माने जागृत बनाववा- काम करे छे के तारक तीर्थपतिना आत्मानी पण जो आ दशा थई शके, तो आपणुं तो स्थान ज क्यां छे ? माटे वधुने वधु जागृति केळववी जोईए.
आ ग्रंथ महासागर जेवो छे. प्रभुना भवोनी विगतवार रजुआतनी साथे साथे वचमां केटलीक अवांतर वातो पण बहु ज उपयोगी अने प्रेरक छे. __ वधुमां वर्तमान युगमां थयेला केटलाक श्रद्धाभ्रष्ट पंडितोए परमात्माना जीवननी केटलीक घटनाओने काल्पनिक कही नाखवा जेवू
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