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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच० ४ प्रस्ताव सामन्तभः द्रदेशना. ॥१०२॥ ONAGACASEARCH पजंतं एत्तो जंपिएण जइ कामियाई सोक्खाई। भोत्तुं वंछह ता वीयरायवयणे समुजमह ॥ १०॥ . इय संसारनिस्सारत्तणपरिकहणेण पडिबुद्धा बहवे पाणिणो । बीयदिवसे य समायन्नियसूरिसमागमणवुत्तंतो समग्गगयतुरयनरनियरपरियरिओ भारियासुयसंपओगपुच्छणकए समागओ नरविकमनराहियो, तओ वंदिग्ण सूरि चिंतिउमाढत्तो-अहो एयस्स भुवणच्छरियभूयं रूवं विमुक्कामयबुट्ठी दिट्ठी सजलघणघोससुंदरो सरो नीसेसपसत्थलखणजुत्तं गत्तं पाणिगणकयरई भारई, तहातमनिग्गहिओ चंदो तमि मंदा रुई दिणयरस्स । गिरिविहियाभिभवो सायरोऽवि को हुज एयसमो?॥१॥ तं नथि जं न जाणइ भूरा भव्यं भविस्समवि वत्थु । ता होइ पुच्छणिजो नियदइयापुत्तवुत्तंतं ॥२॥ __इय निच्छिऊण उवविट्टो उचियासणे राया, गुरुणावि पारद्धा धम्मकहा, पुणरवि पडिबुद्धा पभूयपाणिणो, राइणावि पत्थावमुवलब्भ पुच्छिओ सूरी-भयवं! निच्छियं मए, जहा-तं नत्थि न जाणह तुम्भे, ता काऊणाणुकंप साहह कइया भारियाए सुएहि य सह मम समागमो भविस्सइत्ति, गुरुणा भणियं-महाराय ! धम्मुजमेण तदंतराइयकम्मक्खोवसमो जया होहिइ, राइणा भणियं-भयवं! जाणामि एयं, केवलं दुस्सहविओगविहुरो न सकेमि धम्मुज्जमं काउं, चित्तनिरोहसयपेक्खो हि धम्मलक्खो कहमम्हारिसेहिं साहिउं तीरइ ?, ता सबहा कुणह पसायं, निवेयह अवरमुवायंति, गुरुणा भणियं-जइ एवं ता पजुवासेसु पइदिणं मुणिजणं, एवं खु परमोवाओ वंछियकज विमुपलभ एहि य सह मा भणिय-भ कहमम्हारिमा मुणिजणे, ए KAMGACA RASHID SISAK ॥१०२॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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