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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूरसेन श्रीमहा. दिगुण मरणभयविहुरेण सिग्धं अवकमिऊण मए वाहरिया आरखिया, त य जाव मत्ता इव मुच्छिया इव गयचे. चरित्रे यणा इव बहु बोलावियावि हुंकारमेत्तमवि न दिति ताव नायं मए नूणमेए ओसोवणिमंतेण वा ओसहपओगेण २ प्रस्ताव वा एएहिं चोरोहिं निहयचेयणा कया भविस्संति, कहमण्णहा एवं निदा विहवेजा ?, होउ वा ताव सजीवियं ट्र रक्खामित्तिपरिभाविऊण सणियं सणियं निल्लको एगत्थ वणगहणे, भिल्लावि भवणसिलाथंभाइयं मोत्तूण सेसं बराडमेपि गहाय गया, कमेण पहाया रयणी, उढिओ जणो, जाया पुरे वत्ता, आगओ लोओ अहं च, अवलोइयं गेहं जाव तत्थ एगदिणभोयणमेत्तंपि नत्थि, खीणविभवत्तणओ कलंतराइपउत्तंपि दविणजायं न पावेमि, जओ नत्थि कोऽवि निवाहो तो चिंतियं मए नीसेसजणपहाणतणेण ठाऊण एत्थ नयरंमि । संपइ कप्पडिओ इव कह निवसंतो न लज्जामि ॥२०४॥ दीणाण दुत्थियाण य दाउं भोयणविहिं कुणंतस्स । इहि तु निओदरभरणमेत्तनिरयस्स का सोहा १ ॥२०५॥ कह वा तुरगारूढो पुट्विं भमिऊण पुरिसपरियरिओ । वञ्चिस्सं एगागी इण्हि तु पयप्पयारेण? ॥२०६ ॥ कह वा सहपंसुकीलियबंधवलोयस्स वंछियत्यस्स । अविपूरितो जीयं निरत्थयं उबहिस्सामि ॥ २०७ ॥ दुव्यहगवुदुरवइरिविसरदुब्बिसहदुव्वयणजायं । पन्भठ्ठलठ्ठविभवो पञ्चक्खं कह सुणिस्सामि ॥ २०८॥ ता मोत्तूण इमं ठाणं देसंतरं वचामित्ति चिंतिऊण चलिओऽहमुत्तरावहाभिमुहं, कालंतरेण पत्तो एगंमि सन्नि बAR KESUSAST ॥२४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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