________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobabirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीगुणचंद महावीरच० ८ प्रस्ताव:
राजगृहे श्रेणिकादेधोप
देश:
॥ २८७॥
Sonthong
| भो भो महाणुभावा निम्मलवुद्धीए चिंतह सयोहा । संसारं घोरमिमं महामसाणस्स सारिच्छं ॥१॥ तथाहि-उब्भडवियंभियमुही विसयपिवासा महासिवा एत्थ । दढमणिवारियपसरा सबत्तो चिय परिभमइ ॥२॥
ओहामियसुरनरखयरविक्कमा तंतमंतदुग्गेज्झा । अनिवारियं पयट्टइ भीमा जरडाइणी निचं ॥३॥ पयडियपयंडपक्खा निरवेक्खकंतजीयमाहप्पा । सबत्तो पासठिया कसायगिद्धा विसप्पंति ॥४॥ दावियविविहवियारा जीवियहरणेऽवि पत्तसामत्था । दढममुणियप्पयारा रोगभुयंगा वियंभंति ॥५॥ लढुं छिदं थेवंपि तक्खणुप्पन्नहरिसपन्भारो । भुवणत्तयसंचरणो मरणपिसाओ समुत्थरइ ॥६॥ इट्ठविओगाणिटुप्पओगपामोक्खदुक्खतरुनिवहो । सबत्तो विणिवारइ विवेयदिणनाहकरपसर ॥७॥ इय भो देवाणुपिया! मसाणतुले भवंमि भीमंमि । खणमवि न खमं वसिउं तुम्हाणं सोक्खकंखीणं ॥ ८॥
एवं भगवया वागरिए संसारसरूवे पडिबुद्धा वह पाणिणो, भावसारं च अणेगेहिं अंगीकया देसविरइसबविहै रइपडिवत्ती, हरिसूसियसरीरो यसपरियणो राया गओ जहागयं, नवरं मेहकुमाररायपुत्तो अंतो वियंभंतहरिसपसरो
संसारविरागं परममुबहंतो सेणियनराहिवं जणणिं च पणमिऊण भणिउं पवत्तो-अंबताय! अहमेत्तो वंछामि तुमहिं अणुण्णाओ भगवओ समीवे पवजं पवजिउं, तेहिं भणियं-पुत्त! विसमो जोवणारंभो दुरक्खणिज्जो मयरद्धयसरपहारो दुद्धरा विसयाभिमुहीभवंता इंदियतुरंगमा सम्मोहदायगा लडहमहिलाजणविसाला बाद दुरज्झवसा
॥ २८७ ॥
For Private and Personal Use Only