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________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कोमलकायस्सवि तस्स भुयबलं पेक्खिऊण जायभया । पमिलाणवयणकमला सहस्समल्लावि कंपति ॥५॥ लीलाएविहु पयपंकयाई सो जत्थ जत्य मेल्लेइ । वजाहयन्य धरणी तहिं तर्हि थरहरइ बाद ॥६॥ परिहासेणवि जे तेण पाडिया कहवि मुट्टियाएणं । ते नूर्ण जइ परगेहिणीऍ पुत्तेहिं जीवंति ॥ ७॥ खिवइ य जत्तो दिलुि तत्तो चिय साबरं विणयपणया। अहमहमिगाएँ धावति किंकरा मुक्कवावारा ॥८॥ जस्साएसं वियरइ थेपि अणायरेणऽवि कुमारो । सो लद्धनिहाणो इव मन्नइ कयकिञ्चमप्पाणं ॥९॥ सो भणइ जत्थ ठाणे तत्थ समप्पंति सेसवावारा । तस्सेव परकमवण्णणेण लोयस्स पुणरुत्तं ॥१०॥ इय पुषभवजियसुकयकम्मवसवमाणसोक्खस्स । अयलसमेयस्स सरंति वासरा अह तिविट्ठस्स ॥११॥ . इओ य-रायगिहे नयरे भारहद्धवसुंधराहिवमणिमउडकोडिलीढपायवीढो पयलकालमायंडमंडलुड्डामरपयापकंतदिसिचक्को निविसंकभुयदंडमंडवनिलीणरायलच्छिविलाससुंदरो समरसीमनियमत्तमायंगकुंभत्थलगलियमुत्ताहलविरइयचउको महागोपुरपरिहसन्निहवाहुबद्धवीरवलओ निसियधारकडचक्कनिकंतियवइरिग्गीवो आसग्गीवो नाम राया पडिवासुदेवो पवरं पंचप्पयाररमणिजं विसयसिरिमणुहवइ । एवं च वोलंतमि काले सो विसाहनंदी कुमारो चिर रजमणुपालिऊण मओ समाणो नरयतिरिएसु भमिऊण उववण्णो एगमि गिरिकंदरे सिंहत्तणेणं, पमुक्कालभावो य इओ तओ हिंडतो उवहवेइ तस्स रणो पहाणसालिछेत्तनिवासिफरिसगजणे, ते य तेण उवद्दविजमाणा आ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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