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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AAAAAAAEX कह वाविहु मम दुहिया एसा उच्छंगसंगसंभूया। परहत्थगया धरिही नियजीयं विरहसंतत्ता? ॥७॥ इय एवंविहसंकप्पकप्पणुप्पन्नतिबदुक्खाए । निभच्छियं व जीयं नीहरियं से उरो भेत्तुं ॥८॥ तीसे य अपत्तकालमरणं अवलोइऊण चिंतियं तेण सेवगपुरिसेण, अहो दुटुं मए भणियं-महिला होहित्ति, एसा हि महाणुभावा कस्सइ पुरिसोत्तमस्स भजा संभाविजइ, अओ चिय मम दुव्वयणायन्नणेण संखुहियहियया मया, ता किमित्थ अइक्वंतत्थसोयणेण ?, एयं कन्नगं इयाणि न किंपि भणिस्सामि, मा एसावि मरिहिति । ताहे महुरवयणेहिं अणुअत्तमाणा आणीया कोसंबी नयरिं, विक्कयनिमित्तं च उडिया रायमग्गे, अह धम्मकम्मसंजोएण तप्पएसजाइणा दिट्ठा सा धणावहसेटिणा, चिंतियं चऽणेण-अहो एरिसाए आगिईए न होइ एसा सामन्नजणदुहिया, जओ अणलंकियावि जलहिवेलब वहइ किंपि अपुर्व लावन्नं, किससरीरावि मयलंछणलेहत्व पायडइ कतिपडलं, ता जुजइ एसा मम बहुदवदाणेण गिण्हित्तए, मा हीणजणहत्थगया पाविही वराई अणत्यपरंपर, एयसंगोवणेण य जइ पुण इमीए सयणवग्गेण ममं समागमो होजत्ति कलिऊण जेत्तियं सो मोल भणइ तत्तियं दाऊण गहिया, नीया सगिहे, पुच्छिया य-पुत्ति! कस्स तं धूया ? को वा सयणवग्गो?, तओ उत्तमरायकुलपसूयत्तणेण सयं नियवइयरं कहिउमपारयंती ठिया एसा मोणेणं, पच्छा सेट्ठिणा धूयत्ति पडिवना, समप्पिया मूलाभिहाणाए सेट्ठिणीए, |संलत्ता य एसा-जहा पिए! धूया इमा तुह मए दिन्ना, ता गोरवेण संरक्खेजासि, एवं च जहा निययघरे तहा For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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