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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandr भतिनिभरो हरीनाम विज्जुकुमारिंदो तिपयाहिणापुवगं निवडिऊण चलणेसु संथवं काउं पवतो । कहं ? - जय निज्जियदुज्जयकुसुमबाण!, अविणस्सरपाषिय सुहनिहाण ! । उवसग्गवेरसमरे क्कधीर !, तुह सचं नाउँ जिनिंद वीर ! ॥ १ ॥ संसारजलहिनिवडतसत्त !, पई एकिं रक्खियबहुदुद्दत्त । तु सुमरणमित्व पावरासि, नासह तिमिरं पिव रविपयासि ॥ २ ॥ हदंसणमेत्तेऽवि जे न बुद्ध, ते तिक्खदुक्खलक्खेहिं रुद्ध । तुह चलणकमलमुद्दकियस्स, भद्दाई होंति धरणीयलस्स ॥ ३ ॥ स कयत्थ जाय हरिहरिणपमुह, भुषणेसर ! ते तेरिच्छनिवह । गिरिकंदरपडिमा संपवन्नु, तुहं दिहु जेहिं जिण ! कणयवक्षु ॥ ४ ॥ तावचिय घोरभवाडवीए, निवडंति जीवा दुहसंकडाए। जावऽज्जवि तुम्ह पयारविंद सेवं कुणंति नो जिणवरिंद ! ॥५॥ हिमवंतपमुहकुलपचएसु, खीरोयहिवेइरसायलेसु । गायंति कित्तिं तुह भुवणनाह !, किन्नरसमूह दइयासणाह ॥६॥ तुह कह कह वित्थारु पत्त, नीसेसकहंतर जणिहिं चत्त । उयंमि अहव रविमंडलंमि, खज्जोय न सोहई नहयलंमि ॥७॥ इय विजुकुमारिंदो थोडं कहिउं च केवलुप्पत्ती । पश्चासन्नं पच्छा नियभवणं अइगओ नमिउं ॥ ८ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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