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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SADORAKHARKARISM पहु सालगाभिहाणे गामे तत्तो विणिक्खमेऊणं । सालिवर्णमि जिणिंदो धम्मज्झाणं समारहाइ ॥ ११ ॥ सालजानामेणं वंतरदेवी अकारणं कुविया । कुणइ विविहोवसग्गे तत्थेव ठियस्स जयगुरुणो ॥ १२ ॥ सयमेव परिस्संता जाहे उवसग्गणेण सा पावा । ताहे पूयं काउं जहागयं पडिनियत्तत्ति ॥ १३॥ उवसग्गकारगच्चिय परिस्सममुवहति चोजमिणं । कीरति जस्स सो पुण कत्थवि नो गणइ जयनाहो ॥ १४ ॥ अह भुवणतिलयभूए सुविभत्तचउकचचरावसहे । लोहग्गलंमि नयरे सामी पत्तो विहरमाणो ॥१५॥ तत्थ य राया दरियारिसूरनिद्दलणदंतिरासिसिहो। जियसत्तू नामेणं भुवणपसिद्धो समिद्धो य ॥ १६ ॥ तइया तस्स विरोहो जाओ पचंतराइणा सद्धिं । ताहे अपञ्चपुरिसो पेहिजइ चारपुरिसेहिं ॥ १७ ॥ दिट्ठो य तेहिं सामिय पुट्ठोऽपि न देइ जाव पडिवयणं । रिउहेरिउत्ति कलिऊण ताव गहिओ विमूढेहिं ॥१८॥ अत्थाणमंडवत्थस्स राइणो तक्षणं समुवणीओ। अह पुवविणिहिट्ठो उप्पलगो पेच्छिउं सामीं ॥ १९ ॥ हरिसुक्करिससमुट्ठियरोमंचो बंदिऊण भत्तीए । भणइ नरिंदै एसो न होइ भो चारिओ किं तु ॥२०॥ सो एस जेण तइया आवरिसं कणगवारिधाराहि । निववियमत्थि जायगकुटुंबमिच्छाइरित्ताहि ॥ २१ ॥ सिरिधम्मचक्कवट्टी सिद्धत्थमहानरिंदकुलकेऊ । पवजं पडियन्नो सयमेव जिणो महावीरो ॥ २२ ॥ किं वा सुरखयरनरिंदविंदवंदिजमाणचरणस्स । एयस्स पुरा तुमए निसामिया नेव कित्तीवि? ॥ २३ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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