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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कुलगणसंघाणंपिय पडिणीया जे हवंति इह जीवा । विउलंपि तवं काउं ते किञ्चिसिएसु जायंति ॥४॥ पुणरवि गोयमसामी पुच्छइ भयवं! तओ सठाणाओ। चइउं कइहिं भवेहिं पाविस्सइ मोक्खपुरवासं ॥५॥ जिणनाहेणं भणियं सुरतिरियनरेसु पंच वेलाओ। भमिऊण पत्तबोही लहिही निवाणसोक्खाई ॥६॥ ता भो देवाणुपिया! जमालिमुणिणो निसामिउं चरियं । धम्मगुरुप्पमुहाणं विणयपरा होजह सयावि ॥ ७॥ इय सिक्खविउं मुणिणो समत्थजियलोयवच्छलो वीरो । विहरइ पडिबोहितो भवजणं परमकरुणाए ॥८॥ विहरंतस्स य पहुणो एत्तो ससिसूरवरविमाणाणं । अवयारणअच्छरियं जह जायं तह निसामेह ॥९॥ ___साएए नयरे सन्निहियपाडिहेरो सुरप्पिओ नाम जक्खो, सो य पइवरिसं चित्तिजइ महूसवो य से परमो कीरइ, सो य चित्तिो समाणो चित्तगरं वावाएइ, जइ न चित्तिजइ ता नयरे जणमारिं विउवइ, तब्भएण य सा चित्तगरसेणी पलाइउमारद्धा, णरवइणा विचिंतियं-जइ इमे सवे पलाइस्संति ता अवस्समेस जक्खो अचित्तिजंतो अम्ह वहाए भविस्सइत्ति परिभाविऊग ते चित्तकरा संकलियावद्धा कया, सवेसि नामाणि य पत्तए लिहिऊण घडए छूढाणि, तओ वरिसे वरिसे जस्स नामपत्तयं नीहरइ सो चित्तकम्मं जक्खस्स करेइ, एवं कालो बच्चइ । अन्नया य कोसंबीनयरीए वत्थवो एगो चित्तयरदारगो चित्तविजासिक्खणत्यं तत्थागओ ठिओ य चित्तगरथेरीए मंदिरे, जाया य तप्पुत्तेण सद्धिं तस्स मित्ती, एवं च तस्स अच्छंतस्स तंमि वरिसे समागओ थेरीसुयस्स वारगो, तओ थेरी बहुप्पयारं For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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