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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एमा विविहसंसयसंकियचित्तो खणं विगमिऊणं । सम्मं वियाणणट्ठा ओहिण्णाणं पउंजेह ॥ १८६ ॥ पारिवज्जपवन्नं अह देहं नियइ तं विगयजीयं । तेऽवि ससिस्से गंथत्थबाहिरे मुद्धबुद्धीए ॥ १८७ ॥ ताहे नियदंसणपक्खवायओ चत्तदेवकायव्वो । ओयरिओ आयासे सिस्साणं तत्थ (त) कहणट्ठा ॥ १८८ ॥ वरपंचवण्णमंडलमज्झगओऽदिस्समाणरूवो य । आसुरिपमुद्दे सिस्से भासह संबोहिऊणेवं ॥ १८९ ॥ अवत्ताओ वत्तं पभवइ इच्चाइ तत्तसंदोहं । तो सद्वितंतगंथं तं सोचा आसुरी कुणइ ॥ १९० ॥ अवोच्छित्तीय तओ जाया सीसप्पसीसवग्गस्स । एवं सति वित्थरियं सवत्थ तिदंडिपाखंड ॥ १९१ ॥ fasa हरिसियमणी ठाणाओ तओ गभ सुरावासं । तत्थ य अणण्णसरिसे पंचविहे भुंजए भोए ॥ १९२ अह सो मिरिई आउयखयंमि चइऊण बंभलोगाओ । दूरदिसागयनेगमपणियाउलविवणिमग्गमि ॥ १९३ ॥ परिसरदेसट्ठियसाहुवग्गपारद्धधम्म कम्मंमि । नीसेसगामतिलए कोलागे संनिवेसंमि ॥ १९४ ॥ जुम्मं । छक्कम्म निरयचित्तो वेयत्थवियारकुसरुबुद्धी य । जाओ जयपयडजसो नामेणं कोसिओ विप्पो ॥ १९५ ॥ सो विसयपसत्तमणो दचिणजणकयविचित्तवावारो । पाणवहपमुहगुरुपावठाणनिरवेक्खचित्तो य ॥ १९६ ॥ मिच्छत्तनिहयबुद्धी तिदंडिदिक्खं निसेविउं अंते । असीई उ पुत्रलक्खे सन्चाउं पालिऊण मओ ॥ १९७ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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