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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ता तेवीस जिणे अजियाई वीरनाहपज्यंते । समबुद्धिबलायारे तिहुयणजणपणयपय उमे ॥ ११८ ॥ तह तेसिं च अण्णोऽण्णमंतरं सयलकालकलणेणं । वण्णं पमाणमाउं गोत्तं तह जणणि जणगा य ॥ ११९ ॥ जम्मणनयरे य तहा कुमाररजाइ सव्वपरियागं । सिद्धिगईपजंतं भयवं भरहरूस साहेइ ॥ १२० ॥ रवि पुच्छ भरहो मम सारिच्छा कईह होर्हिति ? । सगराई एकारस चकहरे कहइ सवन्नू ॥ १२१ ॥ अपुट्ठोऽविद्दु भयवं पुणोऽवि वागरइ भरहनाहस्स । नव वासुदेववलदेवजुवलए भाषिणो भरहे ॥ १२२ ॥ पुणरवि भणिओ भरहाहिवेण तइलोक्क मंदिरपईवो । अबलोइऊण परिसं खयरामरनियरपरियरियं ॥ १२३ ॥ छठ्ठमाहतवकिसिय साहुयुधम्मका रिगिहिकलियं । भयवं ! किमेत्थ कोऽवि हु पाविस्सइ तित्थयरलाभं ? ॥ १२४ ॥ तह चकवलिच्छि चोट्सवररयणगुणमहग्घवियं । अहवावि वासुदेवत्तणंपि पावेज भरहंमि ? ॥ १२५ ॥ ता कलिकुलिंग मिरिहं एगंतसंठियं भयवं । दावइ जह एस जिणो चरिमो होही तुह सुओत्ति ॥ १२६॥ एसोच्चि गामागरनगरसमिद्धस्स भारहद्धस्स । सामी तिविदुनामो पढमो तह वासुदेवाणं ॥ १२७ ॥ एसो महाविदेहे पियमित्तो नाम चक्कबट्टीवि । मूयाए नगरीए भविस्सई परमरिद्धिजुओ ॥ १२८ ॥ एवं च आयन्निऊण भरहनरिंदो पहिदुमणो पणभिऊण भयवंतस्स चरणसरोरुहं तक्खणमेव अणेगसुहसेणावइनिवहपरिवुडो पयट्टो नियसुयस्स मिरियस्स वंदणणिमित्तं, तदंतरे चारणलद्धिसंपन्ने ओहिनाणघरे मणपज्जवनाणिणो For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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