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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीगुणचंद महावीरच. ४ प्रस्तावः ॥१२८ ।। HAMROSAROKAR लनिभेण कहिजइसयलगुणगणदहाइ समीववत्ति सजहिजइ अत्तणो लहुयत्तण, तणाजणभणिजमाणमंगलमगरागमिसेण सूइजइहै पुण्णमणोरहा पडिकूलिस्संति पुणो तुम्हाभिप्पेयं अम्मापिउणो, भगवया भणियं-पाणिग्गहणमंतरेणावि पुवं चिय विवाहाय अब्भुक्गयं मए इम-जं न जणणीजणगेसु जीवंतेसु सबविरई पडिवज्जिस्सामि, ता जइ एवं ठिए मइ संतोसमुच्च मित्रइंति जणणिजणगा किमकल्लाणं हवेजा, का वापाणिग्गहस्स लट्ठया ?, जेण पेच्छह पयडच्चिय विवाहसमए कलस प्रार्थना. | परंपराठवणमिसेण दंसिज्जइ उत्तरोत्तरदुहाण पावपबंधो, पज्जलंतजलणच्छलेण पयडिजइ महामोहवियंभणं, गवणय-12 लविलसंतधूमपडलनिभेण कहिज्जइ अत्तणो लहुयत्तणं, चउमंडलगावत्तणववएसेण परुविजइ चउगइयं संसारभमण, है घयमहुपमुहवत्थुहुणणकवडेण दाविज्जइ सयलगुणगणदहणं, तरुणीजणभणिजमाणमंगलछउमेणरियंउग्गिरियंभाविजइ चाउदिसमजसो, कंठावलंबियकुसुममालामायाए परूविजइ समीववत्तिणी दुक्खदंदोली, चंदणरसंगरागमिसेण सूइजइ तक्खणं चिय कम्ममलायलेवो, कन्नगापाणिग्गहणकइयवेण दाविजइ अट्ठकम्ममहामोल्लभंडकिणणत्थं हत्थसन्नति । किं बहुणा ?-जं जं विवाहसमए विहिं पलोएमि सुहुमबुद्धीए । सो सो चिंतिजंते रोमुद्धोसं जणइ मज्झं ॥१॥ ता सुयह मोहपसरं अणुजाणह मं विणा विबाहेण । एवं चिय निवसंतं अम्मापिउनिबुइकएण ॥२॥ एवं भणिए पहुणा तो ते जंपति विणयपणपंगा । तुम्हारिसाण काउं एवं नो जुजा कुमार! ॥३॥ ॥१२८॥ पणइयणपत्थणाभंगभीरुणो जं सयावि सप्पुरिसा । नियकज्जपवित्तिपरंमुहा य पयईए जायंति ॥४॥ तहा-किं उसभजिणवरेणं पाणिग्गहणाइ नो कयं पुचि किंवा न चक्किलच्छी परिभुच्चा सतिपमुहेहिं ? ॥५॥ ACCORMAARA For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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