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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org X-ROMCHAMASANSAR अह भयवं एवं विहवइयरमुवलक्खिऊण नाणेण । अंगं अंगावयवं चालइ जणणीसुहट्ठाए ॥११॥ ताहे तुट्टा देवी हरिसवसुलसिरलोयणकवोला । जायं झडत्ति भवर्णपि राइणो पमुइयजणोहं ॥ १२॥ तत्तो भयवं चिंतइ गम्भुब्भवमेत्तओऽवि कह जाओ। जणणीजणगाणमहो पडिबंधो कोऽवि अइगरुओ?॥१३॥ जं गब्भनिप्पकंपमेत्तेणवि एरिसा विसमरूवा । नियसंवेयणगम्मा एएसि दसा समावडिया ॥ १४ ॥ जइ पुण जीवंतेसुवि समणत्तणमहमहो परजिस्सं । तो मम विरहेण धुवं एए जीयं चइस्संति ॥ १५॥ इय चिंतिऊण भयवं संतोसटुं सजणणिजणगाणं । इयरजणाणवि एवं ठिई व लटुं पइटुंतो ॥ १६ ॥ जीवंतेसुं अम्मापिईसु नाहं मुणी भविस्सामि । इय गब्भगओऽवि जिणो पडिवजइ नियममइगरुयं ॥ १७ ॥ अह सा तिसलादेवी गब्भफुरणसंपत्तपरमपमोया ण्हाया नियंसियमहग्यचीणंसुया सरसचंदणकयंगराया आविद्धपवररयणा तं गम्भं नाइउण्हेहिं नाइसीएहिं नाइतित्तेहिं नाइकडुएहिं नाइकसाएहिं नाइअंबिलेहिं नाइमहुरेहिं सबोउयसुहावहहिं भोयणेहिं परिवालयंती पूरियडोहला निब्भया पसंता सुहेण भवणतलसमारूढा कयाइ पवरनाडयपेच्छणेण कयाइ पुराणपुरिसचरियायनणेण कयाइ विचित्तकोऊहलावलोयणेण कयाइ सहीजणपरिहासकर ण कयाइ उजाणविहारविणोएण कयाइ दुक्खियजणतवणिजपुंजवियरणेणं कयाइ नयरसोहानिरिक्खणेण कयाइ बंधुजणसम्माणणेणं कयाइ धम्मसंबद्धकहावियारणेण दिणाई गमेइत्ति । AAAAAAAAAE%8A २० महा० For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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