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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. नय बहुमुयरिओऽविह बिदुरे थेपि कुणइ साहारं । सयणजणो मोत्तूणं एवं जिणदेसिय धम्मं ॥ ४ ॥ इय भणिए नियदुच्चरियहणुप्पण्णगाढसंतावो । काऊण पायपडणं जहाऽऽगयं पडिगओ राया ॥ ५ ॥ भूसम्म साधम्मो गुरुचरणसुस्सुसापरो दूरुज्झिय सुहिसयणसंथवो जीवियमरणनिरवेक्खो पंचिंदियदित्तसत्तुविजयपरो बहुं कालं गुरुकुलं पज्जुवासेइ । अण्णया य सम्मं समहिगयसुत्तत्थो विसेसेण विहियमणपरिकम्मो जोगोत्ति कलिऊण गुरुणाऽणुष्णाओ समाणो एगलविहारित्तणं पडिवज्जिऊग छट्टुमाइ निडुरं तवोकम्मं कुणमाणो सम्मं परीसहचमूं अहियासेजमाणो वीयरागोव्व गामनगरगराइसु अममाएंतो पइक्खणं वीरासणुकुडयासणारं कुणमाणो पइदिणं सूराभिमुहं आयाविंतो नियजीवियन्भहियं पाणिगणं रक्खितो वायालीसदोसविसुद्धविरसाहारगहणेण संजमसरीरमणुपालेंतो गामाणुगामं विहरेंतो समागओ सुरिंदपुरिविष्भमाए महुराए नय रीए, ठिओ थिपसुपंडगविवज्जिए उक्किद्वतवनिरयमुणिजनसंगए एगंतदेसे, तहिं च निवसतो एगया परमसंवेगगयमाणसो नियजीवियनियमणत्थं चिंतिउमारद्धो । जहा सोऽभिख सुहाई जिओ दुहाई, दूरेण मोतुमभिवंछइ तुच्छबुद्धी । एवं न जाणइ जहा न कहिंपि धम्मसंबंधसिद्धिविरहेण भवंति ताई ॥ १ ॥ भोगे समीहइ करेह रई कहासु, देसित्थिपत्थिवसुभोयण संगयासु । For Private and Personal Use Only Shri Kailassagarsuri Gyanmandr
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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