SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रे रे दुट्ठनराहिव ! विलज्ज निस्सत्त मा पलाइहिसि । सुयविसयतिक्खदुक्खाओ जेण मोएमि तं झति ॥ ९ ॥ रण्णा पढियं मा गज निष्फलं पहर रे तुमं पढमं । न कयाइवि अम्ह कुले पढमपहारो कओ रिउणो ॥ १०॥ तत्तो विचित्त वग्गणसुनिउणकरणप्पयारकुसलेण । घोरसिवेणं रन्नो पवाहिया कत्तिया कंठे ॥ ११ ॥ रन्नावि तक्खणं चिय दक्खत्तणओ इमस्त सत्थजुओ । हत्थो पहारसमए बद्धो नियबाहुबंधेण ॥ १२ ॥ भुपदंड निविडपीडणविहडियदढपहरणंमि इत्थंमि । मुट्ठिप्पहारपहओ निवाडिओ सो धरणिवट्ठे ॥ १३ ॥ दढमंततं सिद्धीवि हिडिया तस्स तंमि समयंमि । विवरंमुहंमि दइवे अहवा सवं विसंवयइ ॥ १४ ॥ अह वीसमिऊण खणं घोरसिवो फुरियवीरिओ सहसा । पारद्धो रन्ना सह जुज्झेउं बाहुजुज्झेणं ॥ १५ ॥ मलाण व खणमुट्टीण पडणपरिवत्तणुचलणभीमो । सरहसहसंतभूओ अह जाओ समरसंरंभो ॥ १६ ॥ निविडभुयदंडचंडिम संपीडणविहडियंगवावारो । मुच्छानिमीलियच्छो अह निहओ सो महीवइणा ॥ १७ ॥ एत्थंतरंभि तियसंगणाहिं वियसंतसुरहि कुसुमभरो । जयजयसहुम्मीसो पम्मुको नरवइसिरंमि ॥ १८ ॥ हारद्धहारकंचीकलावमणिमउडमंडियसरीरा । रणज्झणिरमहुरने उरख पूरियदस दिसाभागा ॥ १९ ॥ नवपारियाय मंजरिसोरभरह सुम्मिलंत भसलकुला । धरियधवलायवत्ता तहागया देवया एका ॥ २० ॥ जुम्मं । तीए भणियं नरसिंघ ! निच्छियं तंसि चैव नरसिंघो । जेणेस महापावो खत्तियखयकारओ निहओ ॥ २१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020689
Book TitleMahavir Chariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNayvardhanvijay
PublisherAhmedabad Paldi Merchant Society Jain Sangh
Publication Year1999
Total Pages696
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy