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श्रीगुणचंद महावीरच. ४ प्रस्ताव:
घोरशिवपराजयः,
॥ ७७॥
RECAUCROSA
रण्णा भणियं कह देवि! कहसु खत्तियखयंकरो एस ? । मइ जीवंते संपइ, पडिभणइ निवं तओ देवी ॥ २२॥ एएण किंपि सिद्धिं समीहमाणेण पावसमणेण । हणिया कलिंगवंगंगहूणपंचालपमुह निवा ॥ २३ ॥ दिद्विप्पवंचमाइंदजालपमुहेहिं कूडकवडेहिं । अच्छरियाई दातिएण को को न वा नडिओ? ॥ २४ ॥ न य केणवि एस जिओ न यावि एयस्स लक्खियं सीलं । तुमए उभयपि कयं अहह मई निम्मला तुज्झ॥२५॥ इय तुह असरिससाहससुंदरचरिएण हरियहिययाए । मम साहसु किंपि वरं जेणाहं तुज्झ पूरेमि ॥२६॥ ताहे मउलियकरकमलसेहरं नामिउं सिरं राया। भणइ तुह दसणाओऽवि देवि! अन्नो वरो पवरो? ॥ २७ ॥ भणियं सुरी' नरवर ! इयरजणोव्य न जइवि पत्थेसि । तहवि तुह वंछियत्थो होही मज्झाणुभावेण ॥२८॥ इय भणिए नरवइणा पराएँ भत्तीऍ पणमिया देवी। लच्छिच पुण्णरहियाण झत्ति असणं पत्ता ॥ २९॥
नरिंदोऽवि तारिसमच्चभुयं देवीरूवं सहसच्चिय नयणगोयरमइकंतमुवलन्भ चिंताकल्लोलमालाउलो एवं परिभावेइ-किमेयं सुमिणं आहु विभीसिया अहवा एयस्स चेव दुकावालियस्स मायापवंचो किं वा मम मइविन्भमो उयाहु अवितहमेयंति ?,
इय जाव निवो संदेहदोलमालंबिउं विकप्पेइ । मा कुणसु संसयं ताव वारिओ गयणवाणीए ॥१॥ घोरसिवोवि मत्तो इव मुच्छिओ इव दढदुधणताडिओ इव महापिसायनिष्फंदीकओ इव मुसियसारवक्खरो इव
॥७७॥
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